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अ. १ आ. १ सू. ८

• प्रश्न-इम प्रकार तो उत्क्षेपण आदि भी गतिविशेष होने से गमनं के अन्तर्गन हो मकते हैं, फिर ये भी अलग क्थों कहे ।

उत्तर-हो तो सकते हैं, किन्तु लोक में गमन का प्रयोग वहीं होता है, जहां वस्तु में अपनी गाति प्रतीत हो । उत्क्षेपण, अवक्षेपण, आकुंचन और प्रसारण वलात कराए गए प्रतीत होते हैं, इसलिए ये गमन से भिन्न प्रकार के कर्ममतीत होते हैं। इसी दृष्टि भे ये अलण को हें, अतएव वलात् चालन की दृष्टि को छोड कर जब केवल उन के चलन पर दृष्टि होगी, तो-उन का चलम गतिरूप में भीत होता हुआ गगन के है। अन्तर्गत होगा !

संगति-द्रव्य गुण कर्म का विभाग दिखला कर, उन के सांझे धर्मे दिखलाते है ।

' सदनित्यं द्रव्यवत् कार्यं कारणं सामान्यविशेष वदिति द्रव्यगुणकर्मणा मविशेषः । ८ ।

--मृत्, अनित्य, द्रव्य. वाला, कार्य, कारण, सामान्यविशेप वाला, यह (वात) द्रव्य गुण और कर्म में एक जैसी है ।

' व्याव-द्रव्य गुण कर्म तीनो सतू हैं, अपनी २ सत्ता, कार्य करने का सागथ्र्य, रखते हैं.। अनित्प भी हैं, अर्थात् नाशवान् हैं, जो उत्पन्न हुआ है, वह अवश्य एक दिन नाश होगा, लोक लोकान्तर, और उन में उत्पन्न द्रव्यों (वस्तुओं ) का नाश होता रहता है, जब द्रव्य नाश होते हैं, नो उन के गुण भी नाश होते हैं, और कर्म तो इरएक द्रव्य के स्थिति काल में ही कई उत्पन्न होते और नष्ट होते हैं ।