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'वैशेषिक-दर्शन ।

वैशेषिक दर्शन । प्रश्न-परमाणु आदि तो नित्य हैं, नाशवान् नहीं, और जल आदि के परमाणुओं में जो रूप रस आदि गुण हैं, वे भी नाशवान् नही, नित्य हैं, तप नाशावान् यह सारे द्रव्यों और गुणो का सांझा धर्म कैसे हुआ ।

उत्तर-यहां यह आभिमाय नहीं, कि हरएक द्रव्य और हर एक गुण का यह धर्म है। अभिप्राय यह है, कि यह धर्म नाश) द्रव्यों में भी पाया जाता है,गुणों मे भी पाया जाता है।द्रव्य,गुण, कर्म में से किसी एक का विशेष धर्म नहीं,किन्तु तनों का आविशेष धर्म है। साधम्र्य निरूपण में सर्वत्र यही अभिप्राय है। यह दूसरी वात है, कि वह सव में पाया जाए, वा कुछ में पाया जाए। जैसे पूर्वोक्त सत्ता घर्म तो सारे द्रव्यों सारे गुणों और सारे ही कमों में पाया जाता है। पर यह नाश (धर्म) उन्हीं द्रव्यों और उन्हीं गुणों में पाया जाता है, जो उत्पत्ति वाले हैं, पर पाया तो जाता है, द्रव्यों में भी और गुणों में भी, हां कर्म सब के सव उत्पत्ति वाले ही होते हैं, इस लिए कम में-सभी में-पाया जाता है । इसी तरह आगे भी जानना ।

द्रव्यव-द्रव्यं विद्यते आधारतया यस्य, तत् द्रव्यवव । द्रव्य वाला, अर्थात द्रव्य के सहारे पर स्थित । परमाणु आदि नित्य द्रव्यों से अतिरिक्त शेष सभी द्रव्य अपने कारण द्रव्य के सहारे पर रहते हैं, गुण सारे और कर्म भी सारे द्रव्य के सहारें रहते हैं।

कार्य, उत्पत्ति वाले ।'अनित्य द्रव्य सभी उत्पत्ति वाले हैं, उन के गुण भी उत्पत्ति वाले हैं, और कर्म सभी उत्पत्ति वाले हैं। २०