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अ. १ आ. १ सू. ८

-कारंण-तीनों ही कारण भी हैं, इन में भे द्रव्य तो द्रव्य गुण कर्म तीनों का कारण है, अपनेन गुणों के भी और अपने कर्मो के भी। गुण भी तीनों के. कारण होते हैं । तन्तु संयोग वस्त्र का कारण है, तन्तुरूप वस्त्र के रूप का कारण, और आघात (घका लगाने वाला संयोग) कर्म का कारण होता है।

सामान्यविशष वाले-द्रव्यत्व,जो सामान्यविशेष है, वहद्रव्यों में हैं, गुणत्व जो सामान्यविशेषहै.वहगुणों में है.और कर्मत्वजो सामान्य विशप है,वह कम में है;इस प्रकार तीन सामान्यविशेष वाले हैं।

संगति-पहले दो का साधम् वतलाते हैं।

द्रव्यगुणयोः सजातीयारम्भकत्वं साधम्र्यम् ।९।

सजातीयों का आरम्भक होना द्रव्यों और गुणों का साधम्र्य है । '.'

द्रव्याणि द्रव्यान्तर मारभन्ते गुणाश्च गुणा न्तरम् ॥ १० ॥

(अर्थात) द्रव्य द्रव्यान्तर के, आरम्भक होते हैं, और गुण गुणान्तर के (जैसे तन्तु वस्त्र के और तन्तुओं का रूप वस्त्र के रूप का आरम्भक होता है) ।

संगति-उंच्क्त धर्म में कर्म का द्रव्य गुण से वैधम्र्य थतालाते हैं कर्म कर्मसाध्यं न विद्यते । ११॥

'.- कंर्म कर्म का कार्य नहीं होता । व्यां०-कर्म का 'आरम्भक कर्म नहीं होता, किन्तु संयोग होता है।