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'वैशेषिक-दर्शन ।

वैशेापक-दर्शन । प्रश्-जहाँ शहतीर के साथ थोड़ी दृी पर कुछ गेंद लट का दिय जाएँ, उन में मे जब एक गेंद को परे खींच कर छोर्ड, तव वह दूसरे गेंद को टकरा कर हिला देगा, इसी प्रकार अगला २ अगळे २ को हिला देगा, वहां तो अगले २ गेंद्र का कर्म परले २ गेंद के कर्म का कार्य है ।

उत्तर-नहीं, वहां भां पद्दल गेंद का कर्म कारण नहीं, किन्तु आघात ( संयोग विशेष ) ही कारण है । पढले गेद के कर्मका कार्य तो दूसरेगेंद को आघात पहुंचाना है, अर्थात् दृसरे गेंद से संयोगविशेशप है, और वस । अव उस संयोग मे दूसरे गेंद में कर्म उत्पन्न हुआ, इस लिए वहां भी कर्म कर्म का कार्य नहीं, संयोग का ही कार्य है ।

संगति-द्रव्य गुण कर्म का आपस में वैधम्र्य बनलाते है न द्रव्यं कार्य कारणं च बधति ॥ १३॥

नहं द्रव्य कार्य को और कारण को नाश करता है । व्या०-तन्तु कारण हैं, वस्त्र कार्य है । इन दोनों में मे कोई भी दूसरे का विरोधी नहीं, न तो तन्तु वस्त्र के नाशक है, न वस्त तन्तुओं का नांशक है, किन्तु वस्त्र का जब नाश होगा.. या तो तन्तुओं के टूटने से होगा, या तन्तुओं का संयोग न रहने से होगा । इसी प्रकार द्रव्य का सर्वत्र या तो आश्रयनाश 'स या आरम्भक संयोग के नाश से ही नाश होगा, अपने कारण द्रव्य वा कार्य द्रव्य से कभी नहीं, सारांश यह कि कार्य कारणभाव को प्राप्त हुए द्रव्यों में वध्यघातकभाव नहीं है ।