पृष्ठम्:वैशेषिकदर्शनम्.djvu/३

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भूमिका

आर्य वृद्धों के रचे हुए छह तर्कशास्त्र जगत् प्रसिद्ध षड्दर्शन हैं, जिन को पड्शास्त्र वा षड्-दर्शन कहते हैं। इनके नाम ये हैं-वैशेषिक, न्याय, साङ्ख्य , योग, पूर्वमीमांसा और उत्तरमीमांसा । इन में से. पूर्वमीमांसा मीमांसा नाम से, और उत्तरमीमांसा वेदान्त नाम से प्रसिद्ध है ।

दर्शनों के ' ). दर्शनों के रचने का उद्देश्य यह था, कि प्रवने का उद्देश्य लोगों को विचार-स्वातन्त्र्य की शिक्षा दी जाए, और उन की बुद्धियों को सीधे मार्ग पर डाल कर उन्नत किया जाय । क्योकि बुद्धि की वृद्धि और विचार स्वा तन्त्र्य में ही मनुष्यों का कल्याण है, इसी में मनुष्य के इस लोक और परलोक का सुधार है। हां यह नि:संदेह है, कि विचार-स्वातन्त्र्य में भी इन सूक्ष्मदर्शी दर्शनकारों ने चैदिक मार्ग को सर्वथा सरल और सीधादेखा, अतएव विचार स्वातन्त्र्य की शिक्षा देते हुए भी वैदिक धर्म की पूर्णतया रक्षा की, इसी लिए ये दर्शन, वेदों के उपांग.कहलाये ।

दैर्शनकार )' दर्शनों के बनाने वाले मुनि कहलाते हैं । जिन मुनि / के नाम ये हैं-कणाद, गोतम, कपिल, पतञ्जलि, जैमिनि और व्यास। मुनि का अर्थ है मनन करने वाला, तर्क सेनश्चय करने वाला, वह पुरुष, जो सत्तर्क से सचाईं का ठीक पता लगा लेता है, और युक्ति द्वारा औरों का निश्चय विठां देता है, उस को मुनि कहते हैं । आर्यजाति में ऋषि }