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अ. १ आ. १ सू. ८

जिससे वे सव' आपस में तो एक ही प्रकार की प्रतीत होती हैं, और दूसरी वस्तुओं से भिन्न प्रकार की । जैसे सारी गौओं में कोई ऐसी संमानता है, जिससें गैौएँ सब एक प्रकार की प्रतीत होती हैं, और घोड़ा वृक्ष आदि से भिन्न प्रकार की प्रतीत होती हैं। इस सामनता को सामान्य वा जाति कहते हैं। इसी प्रकार घोड़ो, षकरी, भैस आदि की जातियां हैं । ऐसे सामान्य धर्म (जाति) के जितलाने के लिए शब्द के आगे संस्कृतं में ‘व' 'और भाषा में ‘पनं' लगाया जाता है। जैसे ‘गोत्व' चा गोपन । अर्थात् सारी गौओं का वह 'समान धर्म, जिससे उन सव में 'गौ' यह एकांकारमितीति और व्यवहार होते हैं ।

अब गोत्व संरीि गौओं का 'तो समानधर्म भी है, और विशेषधर्म भी है। क्योंकि यह घर्म जो सारी गौओं में ‘गौगौ) ऐसी. एकाकार प्रतीति कराता है, यही' धर्मघोडेभेड़ बकरी मनुष्यं पक्षी आदि से गओिं का भेद भी जितलता है, इसलिए यह विशेषधर्म भी है । ये सामान्य विशेष बुद्धि की अपेक्षा से होते हैं। एक दृष्टि से यह सायान्य धर्म है, दूसरी दृष्टि से ही' । धर्म (गोत्व) विशेष धर्म है। इस प्रकार 'सामान्य विशेोष बुद्धि की अपेक्षा से हैं।

, ' ' एक और मकार से भी सामान्य विशेष बुद्धि की अपेक्षा से हैं। मनुष्य की बुद्धि समानता और विशेषता' के जांचने में इतनी दूरतक पहुंचती है। कि जघ विशेषताजांचने लगती है, तो ' इरएक व्यक्ति की दूसरी व्यक्ति से विशेषता जान लेती है। गंवार ,