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'वैशेषिक-दर्शन ।

और मुनि दोनों वड़े आदर के शब्द हैं । जो मन्त्रद्रष्टा हुए, जिन्हों ने धर्म को साक्षात्-किया, वे ऋपि कहलाए, और जिन्हों ने उन सचाइयों का मनन किया और कराया, वे मुनि कहलाए। वैशेषिक , वैशेषिक सूत्रों के कर्ता कणाद मुनि हुए हैं। णदमुनि ] इन का कोई जीवन-चरित्र नहीं मिलता, इसलिए इनके देशा काल और जीवन दृत्तान्त के विषय में निश्चित रूप से इतना ही कह सकते हैं, कि ये कश्यप ऋषि की सन्तान परम्परा में उल्लूक मुनेि के पुत्र हुए हैं। वायुपुराण पूर्व खण्ड अध्याय २३ में लिखा है, कि २७ वें परिवर्त में जब जातूकण्र्य व्यास हुए, उस समय भासक्षेत्र में सोमशर्मा ब्राह्मण रहते थे, जो वहे तपस्वी और योगी थे, कणाद मुनि इस महात्मा के शिष्य थे । कणाद स्वय भी योगी थे, इन की बुद्धि वी शुद्ध और चरित्र चड़ा पावित्र था । वैशेपिक सम्प्रदाय को आचार्ष यह भानते और लिखते आरहे हैं, कि इस मुनि ने समाधि द्वारा महेश्वर को प्रसन्न करके वैशेपिक शास्त्र रचा था ।

कणाद् रचित । कणाद मुनि ने इस दर्शन को वैशेषिक नाम दर्शन के नाम | इस कारण दिया, कि इस मे सूल पदार्थो का जो परस्पर विशेप (भेद) है, उस का निरूपण किया है । । विशेप शब्द सें वैशेषिक शब्द 'अधिकृत्य कृतेशन्थे (अष्टा ४ । ३ । ७) सूत्र से विशेप के वोधक शास्त्र' के अर्थ में बना है* विशेर्प पदार्थभेदं अधिकृत्य कृतं शास्त्रं वैशेपिकम्' विशप अर्थात् पदार्थों के भेद का बोधक वैशेपिक है। इस दर्शन के रचने में कणादमुनि का यह उद्देश था, कि इस विश्व में