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अ. १ आ. १ सू. ८

सामान्यविशेषाभावेनच॥१६॥

सामान्य विशेष के अभावासे भी (कर्मत्व कर्म से अलग है) सैगति-जातियों का ज्यक्तियों से भद् साधन करके. सत्ता का एकत्व साधन करते है

सदिति लिंगाविशषाद् विशेषालिंगाभावा च्चै को भावः ॥१७॥

, :’ ‘सत्',यहचिन्ह (मतीति और व्यवहार ) तो (सद में) अविशेष है; और विशेष चिन्ह केोई है नहीं इस कारण सत्ता ए क है । .

ठया०-जद सब वस्तुओं में ‘संव, सद’ ‘ऐसी 'एकाकार ', प्रतीतिहोती,है, तो ऐसी भतीति कराने वाली सत्ता एक होनी

...इां एकाकार प्रतीतिं होने पर भी यदि कोई भेदक चिन्ह होता,तों एंक नं मानत, जैसें दपि शिखा के डेवी छोटी होते '. रहने से भेद माना जाता है.। पर 'संता. का',भेदक.ऐसा कोई इसींभकार द्रव्यत्व सारे द्रव्यों में,'गुणत्व"सारै गुणों में ' और कर्मत्व सारे कर्मों में एक हाँ हैं।

इति प्रथमोऽध्यायः ।