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अ. १ आ. १ सू. ८

अ० २ 'आ० १ सू० १६

सिद्ध है। इसी प्रकार पृथिवी, जलं, तेज के मूल तत्वों की भी नियता सिद्ध है। ।

सं०-पृथिवी जल तेजशी नाई घायु की अनेक व्यक्तियां प्रत्यक्ष नहीं तव फ्या वायु एक ही व्यक्ति है,धा इस.फी भी मनेफ व्यक्तियाँ हैं, इस पर कहते हैं।

वायोर्वायु संमूर्छनं नानात्वलिङ्गम् ॥१४॥

ब्रायुअां का . गुथमगुत्था होना वायु के नाना होने का लिङ्ग है।

व्या०-चक्रवात , में जो धूळ तृण आदि ऊपर को चट्टते हैं, इस से सिद्ध हैं, कि वायु गुथमगुत्था हीं कर एक दूसरे को ऊपर फैक रहे हैं, उन्हीं के साथ धूल तृण आदि ऊपरे चट्टजात हैं, यदि एक ही वायु होता, तो धूल तृण आदि उसके सांध आगे को बढ़ते, नकि नीचे ऊपर दाएँ छाएँ घछे खाते । सैगति-(प्रश्न) वायु का स्पर्श प्रत्यक्ष है, तो फिर स्पर्श वायु का अदृष्ट लिंग कैसे हुआ, इस आशंका का उत्तर देते हैं

वायुसंन्निकर्षे प्रत्यक्षाभावाद् दृष्टं लिंगं न विद्यते ।॥१५॥

वायु के सम्बन्ध में मत्पक्ष न होने से दृष्ट लिङ्ग नहीं है ।

  • यद्यपि स्पर्श प्रत्यक्ष है पर वायु के लिङ्गः (चिन्ह) ।

के रूप में प्रत्यक्ष नहीं। क्योंकि वायु जो प्रत्यक्ष-नहीं।

(इसलिए स्पर्श अपने स्वरूप से तो मत्यक्ष ही है; पर वायु के लिङ्ग के रूप से प्रयक्ष नहीं। इसलिए स्पर्श वायु का दृष्ट लिङ्ग नहीं ।