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अ. १ आ. १ सू. ८

शाब्दरूप.लिङ्ग के भेद न होने से और भेद होने से ।

सत्ता के एकत्वकी साधिका है, वैसे शब्द लिङ्ग की सर्वत्र अवेि लिङ्ग कै न प्रतीति जैसे सत्ता के विषय में नहीं, वैसे आर्कोश के विषय में भी नहीं।

तदनुविधानादेकपृथक्त्वचेति ॥३१॥

सु एक होना एक पृथक् व्यक्ति होने का बोधक है।

द्धितीय अध्याय-द्वितीय आह्निक

संगति-पृथिवी आदिका गन्ध वाली होना आदि लक्षण कहे, ये लक्षण कैसे घटते हैं, जब कि गृन्धु आदि वायु, आदि में भी पाए म गन्ध की प्रतीति को औपाधिक व्यवस्थापित करते हैं

, पुष्पवस्त्रयोः साति सन्निकर्षे गुंणान्तराप्रादु

पुष्प और वस्त्र के सम्बन्ध होने परं गुणान्तरं (तन्तुओं के गुणों) से प्रकट न होनावस्त्र मैं (वैमे)'गन्ध कॅ अभाव का लिङ्ग है ।