वैशेषिक दर्शन।
शाब्द के भेदसे वक्ता का अनुमान-होता है, यह दूसरा वैधम् नित्य से है।
अनित्यश्चायं कारणतः ॥२८॥
व्या-शब्द अनित्य है, क्योंकि कारण वाला है । और नित्य कारण वाले नहीं होते ।
नचासिद्धं विकारात् ॥ २९ ॥
असिद्ध भी नहीं, विकार चाला होने से ।
व्या-यदि कहो, कि भेरी'दण्ड संयोग शाब्द का व्यञ्जक है, कारण नहीं, इस लिए 'कारण वाला होना' यह तुम्हारा हेतु ही असिद्ध है, तो इस का उत्तर यह है, कि शब्द यतः विकार वाला है, भेदी दण्ड संयोग के तीव्र होने से शब्द भी तीव्र होता है, और मन्द होने से शाब्द भी मन्द होता है, इस लिए कारण वाला होना सिद्ध है।
अभिव्यक्तौ दोषात् ॥ ३० ॥
अभिव्यक्ति में दोष से ।
व्या-यदि तीव्र संयोग से तीव्र शब्द की और मन्द संयोग सेस मन्द शाब्द की अभिव्यक्ति मानो, तो इस में यह स्पष्ट दोष है, कि जो पदार्थसमानदेशी हो. उन सव की अभिव्यक्ति एक ही व्यञ्जक से हो जाती है, जैसे अन्धेरें में पड़ी वस्तुओं की गिनती के लिए कोई दीपक जलाए, तो यह नहीं होगा, कि उन वस्तुओं केरूप आकारादिउस से अभिव्यक्त न हों, क्योंकि वे सब समानदेशी हैं, और एक ही इन्द्रिय अथात् नेत्र सः