वैशेषिक दर्शत ।
तीन वार उच्चारण भी अनुकरण मात्र है। और यह वही नृत्य है, जो इसने पर वा परार किया था, यह प्रत्यभिज्ञा भी तत्स् दृश नृत्य को लेकर है। सो ये हेतु व्यभिचारी होने से नित्यता के साधक नहीं हो सकते, और नित्यता के बाधक तथा अनि त्यता के साधक अव्यभिचारी हेतु पूर्व दिखला दिये हैं, इस लिए शब्द अनित्य है।
सख्याभावः सामान्यतः ॥ ३७ ॥
संख्या का होना सामान्य से हे ।
व्या-(प्रश्न) याद वर्ण अनित्य है, तो फिर ती अनगि नत वर्ण हो जायेंगे । तव वर्ण पचास हैं, वा त्रिसठ वा चौसठ है, इत्यादि कथन कैसे बन सकता है । उत्तर-यह संख्या सामान्य धर्म को लेकर कही जाती है। जितने'क' हैं, सवमॅकत्व=कपनसमान हैं,इसलिए‘क’एक गिना गया । इस अभिप्राय से वणों की संख्या नियत की जाती है। जैसे द्रव्य असंख्यहैं, तौ भी पृथिवीत्व आदि सामान्यधर्मकीलेकर नी द्रव्य कहे जाते हैं। यह वही 'ग ? है, इस प्रकार प्रत्यभिज्ञा भी इसी जाति के सहारे पर होती है। जैसे कटे हुए बाल फिर उतने बड़े द्रो जाने पर 'यह वही'वाल हैं ? ऐसी प्रत्याभेित्रा होती है ।
तृतीय अध्याय, प्रथम. ओह्निक ।
संगति-बाह्य द्रव्यों की परीक्षा करके, आन्तर द्रव्यों की परीक्षा में, ऽद्देश क्रम से प्राप्त आत्मा की परीक्षा आरम्भ करते हैं
प्रसिद्धा इन्द्रियार्थाः ॥ १ ॥