व्याप्ति अटल सम्वन्ध को कहते हैं । -जैसे धूम:का:अमि के साथ अटल सम्बन्ध है । धूम विना अग्रि के कभी नहीं होगा, अतएव धूम 'अमि का लिङ्ग है। पर अनि विना धूम के भी रहती है, इस लिए आग्,िधूम का लिङ्ग नहीं। ऐसे ही सर्वत्र व्याप्ति सम्बन्ध सें ही लिङ्ग का निश्चय करना चाहिये ।
संगति-प्रसंग से हेत्वाभासों का निरूपण करते हैं
अप्रसिद्धोऽनपदेशोऽसन् संदिग्धश्चानप देशः ॥ १५ ॥
व्याप्ति राहेित असद्धतु (हेत्वाभास) होता है, तथा असिद्ध और संदिग्ध असद्धतु होता है।
संगति-व्याप्ति रहित और असिद्ध का उदाहरण दिखलाते है
यस्माद् विषाणी तस्मादश्वः ॥ १७ ॥
. क्योंकि सींग वाला है, इसलिए घोड़ा है।
व्या-जव गधे को देख कर यह वात कही हो, तो यहां दोनों हेत्वाभास घट जाते हैं। घोड़े के सींग अमासिद्ध हैं, इस लिए अप्रसिद्धत्वाभास है। और जो हेतुदिया है, वह प्रसिद्ध है, क्योंकि सींग ही वहां नहीं है । गधे के सग, नहीं होते ।
संस-संदिग्ध का उदाहरण देते है
यस्मादविषाणी तस्माद्गौरिति चानेकान्ति कस्योदाहरणम् ॥ १८ ॥
क्योंकि सींग वाला है, इस लिए गौ है,यह अनैकान्तिक (=संदिग्ध ) का उदाहरण है।