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'वैशेषिक-दर्शन ।

वैशेषिक दर्शन ।

व्या-विलक्षण सींगों से तो गौ की सिद्धि हो सकती है, पर निरे सींग मात्र से गौ की सिद्धि नहीं हो सकती, क्योंकि सींग भैस आदि के भी होते हैं, इस लिए यह व्यभिचारी हेतु है । व्यभिचारी को ही संदिग्ध वा अनैकान्तिक कहत हैं। क्योंकि यद्यपिसींगों वालीवहाँ गौभी होसकती है,परयह आवश्यक नहीं, कि गौ ही हो, इस लिए यह संदिग्ध हेत्वाभास है।

स-हेत्वाभास की विवचना का फल दिखलाते हैं

आत्मेन्द्रियार्थे सन्निकर्ष द्यन्निष्पद्यते तद न्यत् ॥ १८ ॥

आत्मा, इन्द्रिय और अर्थ के मम्वन्ध से जो उत्पन्न होता है, वह अन्य है।

व्या-आत्मा इन्द्रिय और विषय के सम्वन्ध से जो ज्ञान उत्पन्न होता है, वह अप्रसिद्ध असिद्ध और संदिग्ध इन तीनों हेत्वाभासों से भिन्न है, अतएव सद्धेतु है। अप्रसिद्ध इस लिएँ नहीं, कि ज्ञान गुण है, और गुण सदा द्रव्य के आश्रय रहता है, और ज्ञान का द्रव्य के आश्रय होना संदिग्ध भी नही, और ज्ञान का होना हरएकके अनुभव सिद्ध है, इसलिए असिद्ध भी नहीं।

संस-हो ज्ञान 'गुण से आत्मा का अनुमान, पर इस से अपने ही आत्मा का अनुमान हो सकता है, दूसरों में भी आत्मा है, इस का अनुमान कैसे ही, क्योंकि दूसरों का ज्ञान तो प्रत्यक्ष नहीं होता और प्रत्यक्ष के विना अनुमान नहीं होता, इस आशंका को मिटाते हुए कहते है ।

प्रवृत्तिनिवृत्ती च प्रत्यगात्मनि दृष्ट परत्र लिंगम् ॥ २० ॥