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अ. १ आ. १ सू. ८

ग से।'सो जवं परंमाणु के अवयंव ही नहीं, तो अवयवंविभाग हो ही नहीं सकता। ' ' ' ' ' ।

' सं-परमाणु है, तो उंस का नेत्र से प्रत्यक्ष क्यों नहीं होता इस का उत्तर देते है

['महत्यनेकद्रव्यवत्वाद्रूपाचोपलब्धिः ॥६॥

महत, में, अनेक द्रव्यों वाला होने से और रूप से प्रत्यक्ष होता है (प्रत्यक्ष वहू वस्तु होती है, जो अनेक द्रव्यों के संयोगः से महतं वस्तु वन गईहो, और उस में रूप भी हो । पृथिवी जल तेज के परमाणु रूप वालें हैं,पंर वे एक निरवयवं द्रव्य है;" अतएव महत् नहीं, परम सूक्ष्मं हैं, इसी लिए उन का मंत्य' नहीं होता, और ) ।

सत्यपेिद्रव्यत्वेमहत्वरूपसंस्काराभावाद्वायो स्नुपलब्धिः ॥ ७. ॥! ' ' :

द्रव्यत्व'और महत्त्वे के होते हुए-भी रूप का सम्बन्ध न होने से वायु का प्रत्यक्ष नहीं होता । • • • । सै-द्रव्य के प्रत्यक्ष के अनन्तर गुणों के प्रत्यक्ष के कारण भः दिलाते हैं-. . . अनेकद्रव्यसमवायाद्रू पविशेषाच रूपोप • { .. . ... । ५० । • ५ • । • • • ! - 1. अनेक-टुल्य-चाळे में समवेत होने से और रूप विशेष सां रूप का भत्यक्ष होता.है । .

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व्या-उस रूप कां मत्वक्ष होता है, जो अनै इब्द वाले