पृष्ठम्:वैशेषिकदर्शनम्.djvu/९२

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति
९०
'वैशेषिक-दर्शन ।

प्रत्यक्ष और अमत्यक्ष के संयोग को अप्रत्यक्ष होने से पश्चा त्मक नहीं है।

व्या-प्रत्यक्ष द्रव्यों का संयोग प्रत्यक्ष होता है, जैसे वृक्ष और पक्षी का संयोग । पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष का संयोग प्रत्यक्ष नहीं होता. जैसे वृक्ष और वायु का संयोग । अव पांच भूतों में से पृथिवी. जल, तेज ये तीन मत्यक्ष हैं, वायु और आकाश ये दो अमत्यक्ष हैं। सो शरीर यदि इन पांचों के संयोग से उत्पन्न होता, तो प्रत्यक्ष न होता, पर प्रत्यक्ष होता है, इस से निश्चित है कि पञ्चात्मक नहीं है, और इसी युक्ति से चतुरात्मक भी नहीं । रहा ध्यात्मक सो

गुणान्तराप्रांदुर्भावाच न घ्यात्मकम् ॥३॥

विलक्षण गुणों के प्रकट न होने से यात्मक भी नहीं है (यदि तीनों द्रव्यों के रासायनिक मेल से कार्य द्रव्य आरम्भ होते, तो इन में तीनों से विलक्षण गुण उत्पन्न होते, जैस हरिद्रा और चूने के रासायनिक मेल से लालरङ्ग उत्पन्न होता है। पर शरीर और पृथिवी आदि विषयों में पृथिवी आदि से विलक्षण गुण नहीं पाये जाते, इस से सिद्ध है, कि ये ध्यात्मक नहीं, और इसी रीति से द्यात्मक भी नहीं । किन्तु एक ही भूत से आारक हैं ।

संस-जव एकात्मक ही हैं, तो शरीर में गन्ध, गीलापन और गर्मी ये तीनों के अलग २ गुण कैसे अनुभव होते है, इस का उत्तर ठेते है।

अणुसंयोगस्त्वप्रतिषिद्धः ॥ ४ ॥

किन्तु अणुओं का संयोग निषिद्ध नहीं है ।