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अ. १ आ. १ सू. ८

व्या-दूसरे द्रव्यों के अणुओं के संयोग का हम निषेध नहीं करते, किन्तु रासायनिक मेल का निषेध करते हैं। जैसे घड़ा मट्टी का ही कार्य है, पर उस के बनने में जल भी सह कारी होता है। इसी प्रकार शरीर है तो निरा पार्थिव, पर उस की रचना में, न केवल रचना में, किन्तु स्थिति में भी जल तेज वायु आकाश सहकारी हैं। इसी लिए इन के धर्म भी शरीर में पाये जाते हैं। और मूतक शरीर के सर्वथा सूख जाने पर, केवल पार्थिव अंश के ही रह जाने पर भी, शरीर त्वेन जाना जाता है, इस लिए एक भौतिक है।

तत्रशरीरंद्विविधं योनिजमयोनिजं च ॥५॥

इन में स (शरीर, इन्द्रय, विषय में से) शारीर दो प्रकार का है, योनिज (माता पिता से उत्पत्ति वाला) और अयोनिज ( बिना माता पिता के उत्पत्ति वाला) ।

सैस-अयोनिज शरीरों में प्रमाण दिखलाते है

अनियतदिग्देश पूर्वकत्वात् ॥ ६

( हैं, अयोनिज) क्योंकि जिन का,दिशा देशा कोई नियत नहीं, उन (अणुओं) के अधीन इनकी उत्पत्ति है (शारीर के उत्पा दक अणु जैसे शुक्र शोणित में हैं, वैसे आदि में विना माता पिता के मिल जाते हैं। तत्वों का संयोग विशेष ही तो शरीर का कारण है, वह जैसे अव माता पिता के शरीर में होता है, वैसे आदि में ठीक वैसा ही संयोग विशेष भूमितल. पर ही हो जाता है। सो जैसे इन अणुओं की दिशानियत नहीं, वैसे देश भी नियत नहीं कि शरीर में ही हो और शरीर से बाहर न हो.।