अभिघात से उत्पन्न हुआ जो.मूसल आदि में कर्म है(उछ लना है) उस कर्म में हाथ का सैयोग कारण नहीं। कारण व्यतिरेकसे (जबपुरुष मूसल को वेग से ऊपर उठाकर ऊरूखलमें मार कर छोड़ देता है, तव भी वह ऊरखल से चोट खाकर उछ- " लता है, इसं लिए उस उछलने में अभिघात निमित्त है, न कि इस्त संयोग, और न ही प्रयत्र )
तथाऽऽत्मसंयोगः हस्तकर्मणि ॥ ४ ॥
वैसे (अकारण है ) आत्मा का संयोग हाथ के कर्म में (वहां मूसल के साथ हाथ का उपर उठना भी मयत्र वाले आत्मा के संयोग से नहीं हुआ, किन्तु-)
अभिघातान्मुसल संयोगाद्धस्ते कर्म ॥५॥
मूसल के संयोग से (हाथ में भी) अभिघात से (विश) हाथ में कर्म होता है।
आत्मकर्म हस्तसंयोगाच ॥ ६ ॥
शरीर में कर्म होता है । हाथ के संयोग से । व्या-उस समय सारा ही शारीरं जो हिल जाता है, वह हाथ के संयोग सें होता है। वह शारीर में कर्म भी आत्म संयोग से नहीं हुआ । वह ऐसा ही कर्म है, जैसे भरी गागर के भार केवेगसे उलटी घूमती हुई वरखड़ी को दृढ़ पकड़े रखने के कारण एक बालक सारा ही नीचे से उठ कर चरखड़ी के ऊपर से हो कर कुंएँ में जा पड़ा था ।
संयोगाभावे गुरुत्वात् पतनम् ॥ ७ ॥
संयोग के अभाव में गुरुत्व से पतन होता है। ,