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सर्गः
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श्लोकः
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इति निशम्य वचो मुनिना |
XI |
91
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इति प्रतिज्ञां सपणां |
VI |
96
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इति महागुणसद्धि |
III |
116
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इति वचः श्रुतवान् |
III |
116
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इति वचः समुदीर्य |
III |
43
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इति वचस्सुधया |
V |
42
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इति विचिन्त्य |
XI |
128
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इति शिवेन |
III |
107
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इति शिशौ चकिते |
XI |
133
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इति समीपगशिष्य |
XI |
147
|
इति समीरयति |
III |
101
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इति समीरित एव |
III |
104
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इति हरिर्गमनाय |
III |
60
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इतीरयन्तं |
IV |
85
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इतरयित्वा चरणौ |
IV |
86
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इतीरयित्वा जननीं |
II |
10
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इतीरियत्वा भगवान् |
XII |
29
|
इतीरयित्वोपरते |
XII |
21
|
इतीरितश्शकर |
VIII |
19
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इतीरिते प्राह |
I |
42
|
इतीरिते शिष्य |
VII |
29
|
इतिरितो |
VIII |
88
|
इत्थं गुरोः |
VII |
98
|
इत्थं प्रतिग्ना |
VI |
93
|
इत्थं बुवन्तं |
IX |
32
|
इत्थं भृत्यान् |
VII |
144
|
इत्थं यत्र |
VIII |
93
|
इत्थं विचिन्त्य |
VI |
83
|
इथे शङ्करविजये |
II |
22
|
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सर्गः
|
श्लोकः
|
इत्थं स उक्तः |
VII |
70
|
इत्थं स तीर्थनिकरं |
IX |
34
|
इथं स मातरं |
IV |
65
|
इत्थ हर |
VIII |
138
|
इत्याद्यां तां |
VII |
53
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इयुक्तमात्रे जननी |
II |
11
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इत्युक्तवन्तं कृपया |
IV |
92
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इत्युक्तवन्तं भगवान् |
IX |
42
|
इत्येवमादिवचनै |
X |
124
|
इत्येवमुक्त्वा |
VII |
46
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इदमपूर्वम् |
XI |
110
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इदमेव युगान्तरे |
VIII |
108
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इह निनीषुरयं |
VII |
121
|
इह भवत्सुलभ |
XI |
117
|
इह वसन्ति |
X |
24
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इह स्थितं वा |
VII |
82
|
उ
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उक्तोऽप्ययं |
IX |
10
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उक्त्वा मुमूर्छ |
IV |
48
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उक्ष्णा निसर्ग |
IV |
17
|
उचकर्ष केिल |
VIII |
115
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उचास्थितां |
X |
58
|
उच्चैशास्त्रं |
VIII |
56
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उच्छ्रायिकूलतरवः |
XI |
29
|
उत्तरुत्तम |
X |
85
|
उत्थाय गोपककुलं |
XI |
44
|
उत्थाय तं |
IV |
89
|
उत्पादयन् |
XI |
53
|
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