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सर्गः
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श्लोकः
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तेदपतन्मे |
V |
26
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तद्द्रष्टुकामो |
IV |
79
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तद्रोमकूपेषु |
IX |
50
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तद्वत्वदीया खलु |
VII |
68
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तन्नास्ति नो वेत्ति |
VI |
16
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तपश्चरेयं यदि |
II |
20
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तपसि भक्तिमतो |
III |
99
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तव वपुः किल |
IX |
55
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तव शरीरसमुत्थित |
III |
93
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तस्मात्स्खमातुरपि |
IV |
61
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तस्मादहं |
V |
32
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तस्मादेव सुरार्थि |
IX |
80त
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तस्मान्न् भेयमपि |
VI |
24
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तस्मिन् दिने मृग |
IV |
22
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तसिदिने शिव |
IV |
10
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तस्मिन्महे महति |
XI |
49
|
तमिन्समर्चयति |
IX |
3
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तस्यानुशासनम् |
VIII |
102
|
तस्योपधाम किल |
IV |
3
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तां दौहृदं भृश |
IV |
15
|
तां बन्धुतागमत् |
IV |
16
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ताण्डवं मुनिजनो |
VIII |
4
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तातस्य मारण |
IX |
69
|
तातेह ते |
II |
8
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तात्पर्ये ते |
VII |
51
|
तान् याचितुं |
IX |
39
|
तावापतुर्द्धिजगृहं |
VI |
27
|
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सर्गः
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श्लोकः
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ताश्चेत्पुरा |
VI |
40
|
तिष्ठन्गुरौ तिष्ठति |
IX |
88
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तीरातीरं सञ्चरन् |
VII |
14
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तीत्वा समुद्रं जनका |
VIII |
78
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तीत्र्वा समुद्रं विनिहत्य |
VIII |
87
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तीर्थानि सेवितुमनाः |
IV |
66
|
तीर्थेऽत्र मज्जन |
IX |
25
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तीव्रव्याधि |
X |
130
|
तुङ्गैः श्रृङ्गैः |
X |
18
|
तुरगवन्नृपति |
XI |
100
|
तुष्टे गुरौ तुप्यति |
VII |
26
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तेनानुनीतो |
I |
28
|
तेनैव तावपि |
VI |
43
|
तौ दम्पती शिवपरौ |
IV |
9
|
तौ दम्पती सुवसनौ |
I |
31
|
तौ संविदं व्यतनुतां |
IX |
44
|
तौ हृष्टपुष्टमनसौ |
VI |
45
|
त्यक्त्वा मण्डन |
V |
46
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त्यजति निजवधूं |
VII |
134
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त्यजति नूनमसौ |
XI |
132
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त्यजति स स्म फलादि |
III |
23
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त्रिमुनिवारमसौ |
V |
41
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त्रिशूलमुद्यम्य |
IX |
48
|
त्रिसम एव शिशोः |
XI |
116
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त्वं तात दूर |
II |
12
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त्वं तात पूजय |
III |
3
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त्वं नासि देहो |
XII |
80
|
त्वं चाङ्गनाः |
XII |
80
|
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