पुटमेतत् सुपुष्टितम्
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सुवर्णमालास्तुतिः ।
थूत्कारस्तस्य मुखे भूया-
त्ते नाम नास्ति यस्य विभो।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ३२ ॥
दयनीयश्च दयालुः कोऽस्ति म-
दन्यस्त्वदन्य इह वद भो।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ३३ ॥
धर्मस्थापनदक्ष त्र्यक्ष गु-
रो दक्षयज्ञशिक्षक भो।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ३४ ॥
ननु ताडितोऽसि धनुषा लुब्धधि-
या त्वं पुरा नरेण विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ।। ३५ ॥