भाँति शैव-दर्शन-साहित्य की अनुपम सेवा की है और पुराने शैवाचार्यों
के बहुत से ग्रन्थों तथा तंत्रों पर टीकाएँ लिखी हैं। इन की रचनाओं से
इन के अगाध पाण्डित्य तथा प्रतिभा का परिचय मिलता है। इन की कुछ
मुख्य कृतियों के नाम ये हैं :
(१) प्रत्यभिज्ञाहृदयम्
(२) शिवसूत्रविमशिनी
(३) स्पन्दनिर्णय
४) शिवस्तोत्रावली-विवृति
कश्मीर के साहित्य-सेवियों ने जो स्तोत्र-ग्रन्थ लिखे हैं उनमें से ये दो
प्रमुख हैं-
(१) श्रीशिवस्तोत्रावली।
(२) जगद्धरभट्टप्रणीत स्तुतिकुसुमाञ्जलि ।
स्तुतिकुसुमाञ्जलि का हिन्दी टीका सहित एक उत्कृष्ट संस्करण निकल चुका है । इसके सम्पादक श्री प्रेमवल्लभ शास्त्री और प्रकाशक पं० केशवदत्त त्रिपाठी हैं।
आज से लगभग ६० वर्ष पूर्व 'शिवस्तोत्रावली' की एक सहस्र प्रतियाँ पहली बार चौखम्बा संस्कृत सीरीज, वाराणसी से ही छपी थीं। इस संस्था के अध्यक्ष बड़े आस्थावान् व्यक्ति हैं जिनके द्वारा अब तक सहस्रों प्राचीन संस्कृत-ग्रन्थरत्नों का उद्धार हो चुका है। श्रासन अतीत में ही 'शब्दकल्पद्रुम' तथा 'वाचस्पत्यम्' 'शतपथब्राह्मणम्' जैसे अनेक विशाल ग्रन्थों का व्ययसाध्य प्रकाशन इनसे सुलभ मूल्य में प्राप्त कर संस्कृत-जगत् बहुत बड़े अभाव की पूर्ति अनुभव कर रहा है। सुरभारती का संरक्षक तथा प्रचारक इतना बड़ा संस्थान दूसरा नहीं दिखाई पड़ता। जिस ग्रन्थ की एक सहस्र प्रतियाँ ६० वर्षों में बिक सकी हों उसका पुनः प्रकाशन इन्हीं जैसे व्यक्तियों का साहसिक कार्य है। निस्सन्देह ये धन्यवाद के पात्र हैं।
जिया लाल कौल
[ भूतपूर्व अध्यक्ष, संस्कृत-हिन्दी-विभाग,
श्री प्रताप कॉलेज, श्रीनगर, कश्मीर ]