१९८ श्रीशिवस्तोत्रावली एतदेव श्लाघमान आह यद्यथास्थितपदार्थदर्शनं युष्मदर्चनमहोत्सवश्च यः । युग्ममेतदितरेतराश्रयं भक्तिशालिषु सदा विजृम्भते ॥ ७ ॥ = ( उमेश = हे पार्वती-नाथ ! ) यत् यथा स्थित पदार्थ-दर्शनम् = अपने स्वाभाविक स्वरूप में ठहरी हुई ( चिद्रूप से अभिन्न होने वाली ) सभी सांसारिक वस्तुओं का जो दर्शन (अर्थात ज्ञान ) ( अस्ति = है ), यः च युष्मद् - अर्चन महा-उत्सवः = ( अ-आनन्द-रूपिणी ) आप की पूजा का जो बड़ा उत्सव ( अस्ति = है, ) एतत् = ये - युग्मम् = दोनों बातें इतर इतर = एक दूसरी पर आश्रयम् (अस्ति) = [] रहती हैं । ( अर्थात् वस्तुओं की वास्तविक स्थिति से अभि- नता के ज्ञान के विना नन्द- रूपिणी आप की पूजा का बड़ा उत्सव संभव नहीं होता। ऐसे ही उस उत्सव के बिना वस्तुओं की स्थिति का यथार्थ ज्ञान नहीं होता। इसलिए ये दोनों बातें एक साथ होती हैं । ) ( इदं च = और इन दोनों बातों का ) भक्ति-शालिषु = ( आपके ) अन्य - भक्तों में सदा = सदा
- विजृम्भते = विकास होता है ॥ ७ ॥.
- यथास्थितानां चिदात्मनां पदार्थानां दर्शनं - विज्ञानं विना न त्वद- द्वयपूजा महोत्सवः, तं च विना न यथास्थितवस्तुज्ञानम्, इतीदं द्वयमि- तरेतराश्रयं भक्तिशालिषु सदा विजृम्भते, त्वयैवास्योभयस्य युगपत्प्रका- शनात् ॥ ७ ॥
- अर्थात् आपके अनुग्रह से भक्त-जन समावेश में इन दोनों बातों का एक
साथ ही अनुभव करते हैं । १ च० पु० चिदात्मनामिति पाठो न दृश्यते । २ ख० पु० ज्ञानमिति पाठः । ३ घ० पु०, ३० पु० युगपत्प्रकाशादिति पाठः |