सर्वात्मपरिभावनाख्यं द्वितीयं स्तोत्रम् परमामृतकोशाय परमामृतराशये । सर्वपारम्यपारम्यप्राप्याय भवते नमः ॥ २५ ॥ परमामृत- ( जो ) परमानन्द रूपी = अमृत का कोशाय = भांडार ( है ), परमामृत = ( जो ) मोक्ष रूपी स्वरूपात का राशये = खजाना ( है ) सर्व- = ( तथा जो ) समस्त ( तत्त्व- वर्ग की ) परमामृतस्य – आनन्दरसस्य कोशो-गञ्जमिव । अतस्तत्पूर्णत्वा - द्राशिञ्च, बहिरपि तन्मयत्वात् । सर्वस्य – मेयोदे: पारम्यं - परमत्वं- प्रकाशमानता | तस्यापि पारम्यम् - आनन्दघनश्चमत्कार : शाक्तः समु- ल्लासस्तेन प्राप्याय ॥ २५ ॥ महामन्त्रमयं नौमि रूपं ते स्वच्छशीतलम् । अपूर्वामोदसुभगं ( प्रभो = हे प्रभु ! ) महा- = ( जो ) अति उत्कृष्ट मन्त्रमयं=अहं परामर्श से संपन्न (है), स्वच्छ - = ( जो ) निर्मल शीतलम् = और शीतल ( है ), अपूर्व - = ( जो ) अलौकिक - पारम्य = ( ईश्वर - तत्त्व आदि रूपी) उच्च काष्ठा की भी पारम्य = अन्तिम सीमा पर (अर्थात् शिव-तत्त्व रूपी परम पदवी पर ) प्राप्याय = प्राप्त होने से सुलभ ( है,) भवते = ( उसी ) - को नमः = प्रणाम हो ॥ २५ ॥ ३३ २. ख० पु० मायादे : - इति पाठः । - परामृतरसोल्वणम् ॥ २६ ॥ आमोद- = सुगंधि से सुभगम् = मनोहारी ( है ) ( एवं = तथा जो ) परामृतरस उल्वणम् = सर्वोत्तम आनन्दरस से पूर्ण ( है ), रूपम् = ( ऐसे ) आप के रूप की नौमि = मैं स्तुति करता हूँ ॥ २६ ॥ ते - महामन्त्रमयम् – अकृत्रिमाहंपरामर्शमयं तव रूपं नौमि - इति प्राग्वत् | स्वच्छं - विश्वप्रतिबिम्बधारणात् । शीतलं - संसारतापहारि- - १. ख० पु० परमानन्दरसस्य कोशः - इति पाठः । -
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