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परात्रिंशिका
दशाद्रव्यक्रियास्थानज्ञानादिष्वपि सर्वशः । |
यथोक्तम्
'द्रवाणामिव शारीरं वर्णानां सृष्टिबीजकम् । |
फुरइ फुरणम अलह काअब्बह पर देउ सोहि अउस मगाह सव्य काल नीसंकसऊ सहजा जाणु पूजस पज्ज इ इ उ उ ह ॥
एवमनुत्तरस्वरूपं विस्तरतो निर्णीतं -यत्र भावनाद्यनवकाशः,प्रसंख्यानमात्रमेव दृढचमत्कार-
१ वीर्यलक्षणम् ।
पं० ६ ख० पु० द्रव्याणामिवेति पाठः ।