पृष्ठम्:श्रीपाञ्चरात्ररक्षा.djvu/२६६

पुटमेतत् सुपुष्टितम्

==== प्रमाणवचनादीना वर्णानुक्रमणिका ====201

         के

केन त्वं पाल्यसे देव १५७ व 497 केवल तद्विधानेन ४३ पार स्म 10-331 केवल मनुजैर्यतु ३९, ४३ पार स 10-3-42 केवलाञ्जलिना वापि १२४. व 88 केशवाराधन हित्वा ६५ म. भा (आनु) 186-17 केशवार्चा गृहे यस्य ६६, १३५ क्षामयेच्चापराधान् स्वान् १५५ वं 474 क्षालयित्वा तत कुर्यात् १६४, सा स 6-190 क्षेिप्रं हि मानुषे लोके १४० भ गी 4-12

           को

को हि भारो हरेर्नाम्नि १७४ वि व 33-66

            क्र

क्रमशः केशवादीनां ९४ पार सं 2-7 क्रमागतैस्तुल्यकक्ष्या १० पा स (च) 19-116 क्रमागतै स्वसंज्ञाभिः ६ पौ स.38,294 क्रान्ते विष्णु बले हरिम् १७ (मन्त्र) क्रियायागाद्दशगुण १०८. बो. अ. क्रिया न कुर्यादन्यत्र १३ पा स (च) 19-131 कुद्धस्तु यश्च कर्माणि १४४ व. पु

गङ्गा विभाव्य तीर्थाम्भ ५३, १११ भ नि गत्वा मैथुनसंगं तु143 व पु

गन्धलेपक्षयकर ९९ पार स 2-43 गन्धलेपमपास्यैव १०० पार स 2-52 गन्धहीने भयोत्पत्ति १७५ गन्धै पुष्पै फलैर्मूलैः १७५ अ ब्र (ना) 2-41 गमयेिष्यामि वासरान् ९२ व 36 गरुडं च विशेषेण १५७ वं 490 गर्भजन्मजरादुःख ५३ भ नि गर्भाधानादिदाहान्त ४ आ प्रा अन्ते

              गा

गायत्रीजपपर्यन्त ११२. वं 77 गायत्र्या चाभिमन्त्र्याप १०६ पि. गी गीतवादित्रनृत्तादि ११८ व पुः अ. 45

        क्ले

क्लेशकर्मविपाकाद्यैः ५ स सि-22

        क्ष

क्षता अशनिपाताद्यैः १२८ सा. स 21-27 क्षन्तव्य तदशेषेण १५५ वं 477 क्षान्तसर्वापचारेण 155 व 478

           गु

गुणै सायमिकै १० गुरुं मन्त्रमृषि छन्द’ १५३ व 457 गुरून् देवान् (व) नमस्कृत्य ८२, ९४ सा स 6-194 ई 6-86 गुरुं चैवाप्युपासीत ६१ व्या स्मृ 2-6 26