पृष्ठम्:श्रीपाञ्चरात्ररक्षा.djvu/२६८

पुटमेतत् सुपुष्टितम्

==== प्रमाणवचनादीना वर्णानुक्रमणिका ==== २०३ चिदानन्दघन शान्त• ८५. सा स 6-212

      चे

चेतनस्त्वेक एवेति ५९, ८७ श्री कृ चेलाजिनकुशोत्तरम् ८३ भ गी 6-11 जपेदष्टाक्षरं मन्त्र १५४, वं 466 जपेद्द्वादशनामानि ९६, वं 45 जपेन्न सन्ध्याकालेषु १५१ कृ क जप्त्वा च सुचिर योग १५२ ना मु जल शुद्धमशुद्ध वा १०३ पा सं (स्मृति रत्नाकरे) जले मत्स्यादीनां १३६, वृ वा

छन्दश्च देवी गायत्रीं १५३ व 462

        छा

छायामाक्रम्य यो मोहात् १२० व पु 45

         जा

जानुभ्यां पाणिभ्यां शिरसा ११५ र आ जायन्ते सप्त जन्मानि १२१ व पु 54 जालपाद समश्रन् वै १४५ व पु

जगद्व्यापारवर्ज ८६ शा मी 4-417

      जि

जिज्ञासुरपि योगस्य १५३ भ गी 6-44 जनने मरणे चैव १६ पा सं (च) 17-44 जिनालय प्रविष्टस्तु २७ शै का जनिष्यति वरारोहे ११९, व पु 45 जिह्वाजप शतगुण १०९ अ ब्र (ना) जन्मद्वयं तु वे मूढा १२१, व पु 45 जिह्वातालुतलस्था च ८४ सा स 6-199 जन्ममृत्युजराव्याधि ९०, भ गी 13-8 जिह्वानिर्लेखनं चैव १०१ पार स 2-63 जपध्यानार्चनस्तोत्रै ४७, १२५ ज स 22-68 जपन्नष्टाक्षरं मन्त्र १५३, वं 456

           ज्ञ

ज्ञानकर्मतपोयोग १७७ व 510 जपन्नुत्थाय शयनात् ९६, व 46 ज्ञानं पुष्पं तपं पुष्पं १७९ जपमध्ये गुरुर्वापि १०८, १४८, बो ज्ञानादिषाड्गुण्यनिधे ५ स सेि 23 जपहोमादिकं सर्व १६४ पा स 13-73 ज्ञानी तु परमैकान्ती ८०, गी स 29 जप तु द्वि(त्रि)विधं कुर्यात् १०७, ज स 14-3 जपान्ते मनसा ध्यात्वा १५४, व 467

तच्चतुर्धा स्थित शास्त्र ९, पा स 19-111 जपेदध्यापयेच्छिष्यान् ६१, १४८, व्या स्म- 2-7 तच्चेदेतच्छ्रतिपथपरिभ्रष्ट २, आ प्रा