पृष्ठम्:श्रीपाञ्चरात्ररक्षा.djvu/२९०

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प्रमाणवचनादीना वर्णानुक्रमणिका २२५ वृतिं प्राप्य विरमेत् १३५ वृत्ति स्वामिनि दासस्य ७२ ना मु वृत्तिहीन मन कृत्वा ७६ या ज्ञ वृद्धातुराणामुष्णाद्भिः १०५ क्र वृषभशिखरिनाथ १२४ प सू व्याधितस्करदोषौ च १७५, पा स (प्रा) व्यापृतेनापि मनसा ७३ इ स 18-83 व्यामिश्रयागमुक्ताना १४६ सा स 2-8 व्यामिश्रयागमुक्तैस्तु ३७, ४२ पार म 10-318

             वे

वेदस्वीकरण पूर्व ७१ द 2-31 वेदान्तेषु यथासार २,२३ म भा वेदाभ्यास तत कुर्यात् ६१ व्या स्मृ 2-6 वेदोदित स्वक कर्म १७६, म 4-14

           व्र

व्रजश्चिन्तय केशव ९७ वि ध 1-60 व्रजेय शरण चेति ९२ ना मु

            वै

वैकुण्ठनामग्रहण १७३ श्री भाग.6-2-14 वैखानसा कथ ब्रूयु २४ म भा (आश्व) 104-83 वैखानसेन सूत्रेण २२ भार्ग वैणवी धारयेद्यष्टि ८३ म 4-36 वैदिक तान्त्रिक श्रौत ३३ का वैदिकाश्चैव निगमान् ६१ व्या स्मृ 2-7 वैदिकैरथवा मन्त्रै २४ म भा (आश्व) 104-85 वैदिकैस्तान्त्रिकैर्वापि १९, २०, ३४ का वैष्णव वामनमालमेत ८६ तै स 2-1-3 वैष्णवाना विशेषेण ७२, ९२ ना मु वैष्णवायतन कार्य ३५ का

शक्ति बीज च शिरसा १५३ व 458 शक्तौ गौणोपचारश्च १२२ शब्देनोच्चतरेणैव ९६. पार स 2-15 शयन भोजन चैव १२२ शयनासनयानादौ ७२, 1१६ ज स शरजोदुम्बराश्वत्थ १०२ पार स शरणागतिप्रकारश्च ५६ नि रा. शरद्ट्रीष्मवसन्तेषु १०० पार स 2-50 शरीरारोग्यमर्थाश्च ७५ वि . 74-43

       शा

शान्तिश्च तस्य भूयोऽपि २७ पा स 19-129

शाम्यन्ति तैर्वज्रभूतै १११ पा स (च) 13-25

       व्य

व्यत्यये परिवाराणा १६ ना व्यर्थ वीक्ष्य गत कालं ८९, ९२ ना मु

    शा

शास्ता चराचरस्यैक १४१ क्र शास्र दिव्यादिभेदेन ३९ पार स 10-332 शास्त्रमन्त्रक्रियादीना १८, पार स 19-579