पुटमेतत् सुपुष्टितम्
१६
सर्गसङ्ख्या | विषयः | पुटसङ्ख्या |
११ | वरद्वयनिर्बन्धः | .... .... १०३ |
१२ | दशरथप्रार्थना | .... .... ११० |
श्लोखसङ्ख्या | अवान्तरविषयाः | ||
११ | |||
२६ | राजन् ! स्मरसि किं पूर्वं मह्यं दत्तं वरद्वयम् । | .... | १०३ |
तदद्य देहि, राजेन्द्र ! सत्यसन्धो भवान् यदि ॥ | .... | १०५ | |
२७ | प्रथमेन वरेणाद्य भरतो मेऽभिषिच्यताम् । | .... | १०७ |
वनं गच्छतु रामोऽथ द्वितीयेन वरेण च ॥ | .... | १०९ | |
१२ | |||
२८ | तच्छ्रुत्वा वचनं घोरं राजाऽभूद्गतचेतनः । | .... | १११ |
चिरेण संज्ञां स प्राप्य कैकेयीमब्रवीद्वचः ॥ | .... | ११३ | |
२९ | किमिदं चिन्तितं, पापे ! त्वया परमदारुणम् । | .... | ११५ |
पापमाशंससे रामे, देवि ! देवोपमे कथम् ? ॥ | .... | ११७ | |
३० | इत्येवं विलपन्तं तं कैकेयी पुनरब्रवीत् । | .... | ११९ |
विषं पीत्वा मरिष्येऽथ न चेद्दद्या वरद्वयम् ॥ | .... | १२१ | |
३१ | स तस्या व्यवसायं तु दृष्ट्वा दीनोऽब्रवीत् पुनः । | .... | १२३ |
कथं शक्ष्यामि मे रामं वनं गच्छेति भाषितुम् ॥ | .... | १२५ | |
३२ | किं मां वक्ष्यति कौसल्या राघवे वनमास्थिते । | .... | १२७ |
धिक्करिष्यन्ति रथ्यासु मामनार्य इति प्रजाः ॥ | .... | १२९ | |
३३ | राघवे हि वनं प्राप्ते नूनं प्राप्स्ये यमक्षयम् । | .... | १३़़१ |
मा ते मे भरतः कुर्यात प्रेतकार्यं गतायुषः ॥ | .... | १३३ | |
३४ | मृते मयि गते रामे विधवा राज्यमावस । | .... | १३५ |
एवं वदन्त्या रखना कृतस्ते न पतत्वधः ॥ | .... | १३७ |