पुटमेतत् सुपुष्टितम्
२६
सर्गसङ्ख्या | विषयः | पुटसङ्ख्या |
४८ | पौरविलापः | .... .... ४४५ |
४९ | जानपदाकोशः | .... .... ४५२ |
५० | गुहसङ्गमः | .... .... ४५६ |
५१ | लक्ष्मणसन्तापः | .... .... ४६६ |
श्लोकसङ्ख्या | अवान्तरविषयाः | |
४८ | ||
पुरीं प्राप्य भृशार्तास्ते विलेपुर्बहुधा जनाः ॥ | ....४४५ | |
११२ | चिन्तयन्तः सदा रामं तत्कथा एव शंसिरे । | ....४४७ |
कैकेयीं बहुधा सर्वे ते निनिन्दुः तदाग्रहात् ॥ | .... ४४९ | |
११३ | तादृशैर्नागरैर्व्याप्ता साऽयोध्या न बभौ शुभा। | ....४५१ |
४९ | ||
रामोऽपि रात्रिशेषेण बहुदूरं समत्ययात् ॥ | .... ४५३ | |
११४ | पश्यन् ग्रामाननेकान् सः स्वराज्यान्तं समाययौ । | .... ४५५ |
५० | ||
अतीत्य कोसलान् रामः दक्षिणाभिमुखो ययौ ॥ | ....४५७ | |
११५ | एवं गच्छन् स रामस्तु प्राप गङ्गां सरिद्वराम् । | .... ४३५ |
स तत्रस्थेङ्गुदीवृक्षमूले विंश्रान्तिमन्वभूत् ॥ | ....४६१ | |
११६ | तज्ज्ञात्वा तत्र निवसन् गुहो रामं समागमत् । | .... ४६३ |
तद्रात्रौ राघवः शिश्ये भूमौ तत्रैव सीतया ॥ | ....४६५ | |
५१ | ||
तद्वीक्ष्य लक्ष्मणः सोढुं नाशकत् भ्रातृसङ्कटम् । | ....४६७ | |
११७ | सर्वं तच्चिन्तयन् नैव प्राप निद्रां स लक्ष्मणः ॥ | .... ४६९ |