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श्रीविष्णुगीता।


शास्त्रेषु दृढ़विश्वासः पवित्रात्मा महामनाः ॥ १२१ ॥
न धर्मसम्प्रदायांश्च योऽन्यान् द्वेष्टि कदाचन ।
महोदारः स एवात्र लब्धुं केवलमर्हति ॥ १२२ ॥
विष्णोरुपनिषन्मय्यां गीतायामधिकारिताम्
ध्रुवमस्याः ताप्रचारेण लोके शान्तिर्भविष्यति ॥
॥ १२३||

इति श्रीविष्णुगीतामृपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे देवमहा- विष्णुसम्वादे विश्वरूपदर्शनयोगवर्णनं नाम सप्तमोऽध्यायः

समाप्तयं श्रीविष्णुगीता।

आस्तिक गुरुभक्त और देवताओंमें श्रद्धालु हैं, जिसका शास्त्रोंमें दृढ़ विश्वास है, जो पवित्रात्मा महामना है और जो अन्य धर्म- सम्प्रदायोंसे कभी द्वेष नहीं करता है एवं जो परमोदार है केवल वही इस उपनिषन्मयी विष्णुगीताका अधिकारी हो सकता है। इस विष्णुगीताके प्रचारसे संसारमें अवश्य शान्ति होगी॥१२१-१२३|| श्रीविष्णुगीतोपनिषद्के ब्रह्मविद्यासम्बन्धी योगशास्त्रका

देवमहाविष्णुसम्वादात्मक विश्वरूपदर्शनयोगवर्णन
नामक सप्तम अध्याय समाप्त हुआ।
इल प्रकारयह श्रीविष्णुगीता समाप्त हुई।