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85 शुकमञ्जुलसन्नादैः शारिकालापविभ्रमै मयूराणां निनादैश्च शोभितप्रस्थसानुकम् ।। १९ ।। अन्येषामपि दिव्यानां पक्षिणां मञ्जुलस्वनैः । शोभितानन्दजनकं गिरिशृङ्ग मनोहरम् ।। २० ।। मत्तमातङ्गशरभसिंहव्याघ्रनिषेवितम् । महाक्रोड शतैश्चैव महिषैर्वनवासिभिः ।। २१ ।। वृकैर्भल्लूकमुख्यैश्च वामरैश्चापि सङ्कुलम् । कस्तूरीमृगसंधैश्च कृष्णसारैश्च शोभितम् ।। २२ ।। चमरीमृगसडैश्च गवयैश्च महामृगैः । शोभितं पर्वतश्रेष्ठं वनमाजरिसङ्कुलम् ।। २३ ।। गुहाशतसमाकीर्ण सिद्धगन्धर्वसेवितम् गन्धवर्षीणां च नारीणां किन्नरीणां तथैव च ।। २४ ।। अप्सरस्सुच मुख्यानां वीणानादैर्मनोहरैः । ह्लादयन्तं हृदम्भोजं पश्यतां हर्षवर्धनम् ।। २५ ।। गरुत्मता वेगवता त्वानीतं पर्वतोत्तमम् । ददृशुर्मुनयो देवा योगिनः शुद्धचेतसः ।। २६ ।। उन्होंने शीघ्र ही आकर शेषाचल पर्वत को देखा, जो अगणित मृगादि, वन पशु युक्त था तथा ताल, हिंताल, पुन्नाग, चम्पा, अशोक आदि से शोभित, कुन्द मन्दार पनस, कसैली से युक्त, तिमिश, वेल, नकमाल आदि पुष्प, चम्पक, पनस आभ नारियल, कोविदार, करंज, पांडर, पीपल आदि बड़े-बड़े वृक्ष, प्लथ, गूलर, जामुन, कैत कटहल, चम्पक, सिनुआर, रक्तचन्दन, पृथ्वी में दुर्लभ खजूर, पलाश, स्यंदन, पाक, कंकोल, मुचुकुन्द, शीशम, महुआ, सेमर, सभी फूलों से पुष्पित , लताओं से परम सुशोभित एवं सदा फल देनेवाले, वृक्षों से भरा हुआ टपकते हुए,