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86 मधुछत्ते-युक्त ; मदान्ध कोयल के कूक, भौरों की गंज, शुक सारिकों के मधुरालाप तथा मोरों के निनाद से शोभित ऊँचे-ऊँचे शिखरों से युक्त था और भी दूसरे-दूसरे नाना प्रकार के पक्षि-रवसे शब्दायमान, मनोहर गिरी शिखर समन्वित, वृक-भालु आदि तया बन्दरों के झुण्ड से समाकुल, मतवाले हाथी, शरभ, सिंह, व्याघ्र, अरने, भैसे आदि अगणित वन मार्जारों से सेवित कस्तूरी मृग के झुण्ड, कृष्णसारों के झुण्ड से समाश्रित, सिद्ध, गन्धर्व सेवित, गन्धवियों, किन्नरियों, रमणियों से परिपूर्ण अनेकों गुफा-युक्त ; मुख्य-मुख्य अप्सराओं के वीणा नाद से ध्वनित, दर्शकों के हृदय कमल को आनन्ददायक तथा वेगशाली श्री गरुडजी द्वारा लाया गया था। दृष्ट्वा श्रीवेङ्कटं शैलमपनिन्युः श्रमं बुधाः । शृङ्गाछुच्ङ्ग समारुह्य वनाद्वनमितस्ततः ।। २७ ।। तदीषु पुण्यतोयासु हृदेषु सरसीषु च । वापिकासु प्रवाहेषु तथा पुष्करणीषु च ।। २८ ।। स्नात्वा स्नात्वा श्रीनिवासं पुष्पैरभ्यच्र्य सादरम् । फलान्यमृतकल्पानि निवेद्य सुसमाहिता ।। २९ ।। न तत्र देवं कश्चिच्च नाऽलयं न च गोपुरम् । ददृशुर्योगिनस्तत्र योगिनिष्ठान्मुनीनपि ।। ३० ।। (११-२६) तत्र स्थितान्मुनीन्दृष्ट्वा चेरुस्तत्र महौजसः । लोकोत्तरातिलावण्यं नानावर्ण मनोहरम् ।। ३१ ।। मृगं वा पक्षिणं दृष्ट्वा गन्धर्व वा दिवौकसः । असावेव हरिश्चेति विस्मयोत्फुल्लमानसाः ।। अनुजग्मुर्गिरौ तस्मिन्दिदृक्षासक्तचेतसः ।। ३२ । उसे सब मुनि, देवता, योगी तथा सिद्धों ने देखकर अपने परिश्रम तथा थकावट को शांत किया । तत्पश्चात एक शिखर से दूसरे शिखर पर, एक जंगल में जाकर, दूसरे जंगल की पवित्र जलवाली नदियों, तालाबों, बाबलियों,