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80 उसीपर लक्ष्मी के साथ श्रीपति नित्य रमते हैं, और उनके दर्शनार्थ शुद्ध मुनिवृन्द, योगी, सिद्ध तथा देवता सभी कहीं तपस्या करते हैं। स्वयम भगवान श्री ब्रह्माजी लोक के उपकारार्थ उसी पर्वतपर महान तपस्या करेंगे । श्री परमात्मा हरि अपना विराट रूप उनको दिखायेंगे और सबको अपने दर्शन से अभीष्ट फल प्रदान करेंगे । महौदार्यादि गुणसागर की अनन्त सीना श्रीपति भगवान गोविन्द निःसन्देह आपके अभीष्ट को पूर्ण करेंगे । (४८-५१) एवमुक्तो वसिष्ठेन चक्रवर्ती गुणाकरः । राजा दशरथो दृष्ट्वा प्रसन्नमुखपङ्कजः ।। ५२ ।। प्रययौ च वसिष्ठेन वेङ्कटाख्यगिरिं प्रति । गङ्गां गोदावरी रम्यां कृष्णां वेणीमनन्तरम् ।। ५३ ।। मलापहारिणीं भद्रां तुङ्गां पम्पां मनोहराम् । भवनाशीं च सम्प्राप्य स्नात्वा स्नात्वा महारथ ।। ५४ ।। वेङ्कटाद्रिं ददर्शाथ तुङ्गशृङ्गसमन्वितम् । उद्यानं नन्दनं चैत्ररथं सम्भूय 1तष्ठात ।। ५५ ।। सर्व-गुण सम्पन्न महाराज दशरथ, वसिष्ठ जी की उपरोक्त बातों को सुनकर महामुनि वसिष्ठ जी के साथ प्रसन्न मुख हो वेङ्कटाचल पर गये और वहाँ, गंगा, गोदावरी, रम्या, कृष्णा, वेणी, मलापहारिणी, भद्रा, तुंगा, मनोहर पम्पा, भवनाशी आदि तीर्थ जलाशयों में स्नान करके उच्च शिखरयुक्त वेङ्कटाद्रि को देखा । (५२-५५) इत्युत्प्रेक्ष्य मनोहारिवृक्षगुल्मलतायुतम् । युवानं च महामेरुमिव चक्षुष्पदं गिरिम् ।। ५६ ।। अरुह्य नयनानन्दहृदयाह्लादकारकम् । निर्शरेषु तटाकेषु सरःसु सरसीषु च ।। ५७ । ।