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94 केवलं पूरके सक्तान्केवलं प्राणरोधकान् । नाडीशुद्धौ महाव्यग्राञ्छुद्धनाडीगणानपि ।। १३ ।। सुषुम्नासङ्गतप्राणान् षट्कर्मनिरतानपि । दशधाऽनुष्ठिते योगकरणे सुसमाहितान् ।। १४ ।। व्याघ्राजिनधरानन्यान्कृष्णाजिनवरांबरान् । वल्कलाऽवसन्नानन्यान्काषायवसनानाप ।। १५ ।। जलतर्पणसंसक्तान् होमकर्मसु निष्ठितान् । बिल्वहोमरतानन्याञ्छमीहोमरतानपि ।। १६ ।। तथाऽमलकहोमेषु निष्ठितान्निर्मलान्मुनीन् । तिलाक्षतैर्यवैः पुष्पैस्तिलव्रीहिभिरेव च ।। १७ ।। पदमेन्दीवरकल्हारैः पुण्डरीकैश्च पायसैः । घृतैः पुष्पैर्मधुयुतैः फलैश्च कदलीगतैः ।। १८ ।। मुद्गात्रैश्च तिलात्रैश्च गुडात्रैर्माषसंयुतैः । अपूपैर्मण्डकैश्चापि तिलपिष्टैस्तथैव च ।। १९ ।। होमं च कुर्वतः कांश्चित्तत्र तत्र सुनिष्ठितान् हृदम्बुजगतं श्रीशं विष्णुमर्चयतोऽपरान्।। २० ।। उन्होंने उस जगह किसी को वीरासन, किसी को पद्मासन, किसी को बद्ध पद्मासन किसी को भद्रासन, किसी को सिंहासन, किसी को सिद्धासन, किसी की सात्विकासन से समाश्रीति, पुनः किसी को वायुभक्षण करते किसी को गोमुखासन लगाये बैठे, कुछ को अगूठाग्रपर, कुछ को एक ही पैरपर खडे, फिर कई ऋषियों को सूथ्र्योन्मुख, कितनों को पञ्चाग्नि मध्य, कितनों को जलशय्या में, कितनों को फल, मूल, जल ही खाकर रहते, कितनों को रेचक, कितनों को पूरक प्रणाम करते, कितनों को प्राणारोध किये, कितनों को नाडीशुद्ध होने पर भी उनके शोधने में