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95 महाव्य, किसी को सुषम्ना में प्राण को रखें, किसी को षट्कर्म में संलग्न, किसी को दशधानुष्ठित योगाभ्यास में तल्लीन, किसी को बाघम्बर मृगच्छाल, वल्कल, पाटादि कपडे, कोई काषाय छाल धारण किये, जल तर्पण में और हीम कर्म में संलग्न वेलहोम, िकसी को शमीहोम, किसी को आवलाहोम आदि नाना भांति के होम में निरत किसी को धी, तिल, अच्छत, जव, फूल, अन्न, पग्र कल्हार, पुण्डरीक, खीर भधु युक्त पुष्प, केला आदि फल, मुद्गान्न, तिलान्न, गुडान्न उरीदान्न, तिलके पीठे आदि अनन्त शास्त्र विहित द्रव्यों से वहाँ पर होम करते किसी को हृदय कमलस्य श्रीपति विष्णु भगवान की पूजा तथा तपस्या करते हुए मुनियों को देखा ! (८-२०) ददर्श पुरुषव्याघ्रः पुनस्तत्रैव केचन । अर्चयन्ति जगन्नाथं सूर्यमण्डलवर्तिनम् ।। २१ ।। श्रानिवास तथा केचिज्जलमध्यगतं हारम् । केचिब्दिम्बं हरेः सौम्यमर्चयन्ति च सर्वदा ।। २२ । । त्रिविक्रमं तथाचान्ये नृसिंहं भीषणं हरिम् । अर्चयन्ति तिलैः पुष्पैरक्षतैश्च फलैरपि ।। २३ ।। उस पुरुषव्याघ्र ने और भी देखा कि कुछ सूर्यमण्डलस्य जगन्नाथ की कुछ जल मध्यस्थ हरि श्रीनिवास की, कुछ सदा सौम्य हरिबिंब की, कुछ त्रिविक्रम भगवान की, कुछ भीषण परमात्मा नरसिंह की फल, फूल, तिल, अक्षत आदि से पूजा करते थे । (२१-२३) केचिद् र्वाभिरन्ये च पल्लवैश्च तथा परे । अन्ये चम्पकपुष्पैश्च पौरन्ये च तापसाः ।। २४ ।। अर्चयन्ति तथा केचित्पुण्डरीकैस्तथाऽपरे । अशोकतरुपुष्पैश्च नंद्यावतैश्च केचन ।। २५ ।। अर्चयन्ति जगन्नाथं तथा बिल्वदलैरपि । तुलस्याः सुदलैश्चापि कृष्णश्चेतैश्च योगिनः ।। २६ ।।