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96 अर्चयन्ति तथा केचिन्मल्लिकाकूसूमैरपि । केचिच्च जातीकुसुमैः मालतीपुष्पसञ्चयै ।। २७ ।। करवीरैस्तथा केचित्पारिजातोद्भवैरपि । तथा कोई टूव से, कोई पल्लव से और कोई चम्पा, पद्म, पुण्डरीक आदि के पुष्पों से पूजन कर रहा था । पुनः किसी तरह अशोकःपुरुष, वेल पत्र, काले-काले तुलसीदल तथा उजले दोनों प्रकार के तुलसीदल से योगिगण जगन्नाथभगवान की पूजा कर रहे थे । इस प्रकार कोई तो मल्लिका के फूलों से, कोई जाति पुष्प मालती पुष्पादि भांति भांति के फूलों से अर्चना करते तथा, किसी को करवीर, किसी को पारिजात किसी को दमनक, किसी की मरुवक आदि अनेक प्रकार के फूलों से अगणित मुनिपुंगवों को इसी तरह भगवान की पूजा करते हुए उन्होंने देखा । (२४-२८) केचिद्दमनकैश्चैव तथा मरुवकैः परे ।। २८ ।। एवमर्चयतो नित्यं ददर्श मुनिपुङ्गवान् । नृसिंहानुष्टुभं केचिज्जपन्तश्च तपोधनाः ।। २९ ।। तारकब्रह्मसंज्ञ च मर्नु प्रणवपूर्वकम् । केचिद्भोपालबीजं च भुक्तिमुक्तिफलप्रदम् ।। ३० ।। केचिद्वाराहमन्त्रं च जपन्ति मुनयोऽमलाः । द्वादशाक्षरमन्ये च वासुदेवं महामनुम् ।। ३१ ।। अष्टाक्षरं तथा केचिन्नारायणमर्नु परम् । जपन्ति मुक्तिबीजं च भुक्तरपि च साधनम् ।। ३२ ।। न्यासद्वादशकं कृत्वा वेदसारं महामनुम् । नीलमेघनिभं श्यामं पीतवाससमच्युतम् ।। ३३ ।। चतुर्भुजमुदाराङ्ग श्रीभूमिसहितं परम् । ध्यात्वा नारायणं मन्त्रं जपन्ति ज्ञानिनोऽमलाः ।। ३४ ।।