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कोई तपोधन नृसिंहानुष्टुभ का, कोई प्रणव बुक्त तारक ब्रह्मम नामक मन्त्र का और कोई भुक्ति-मुक्ति दाता गोपाल बीज का जप कर रहा था । कुछ अमल मुनिगण वराह मन्त्र का जप करते, तो कुछ द्वादशाक्षर वासुदेव का महामन्त्र जपते थे । इसी तरह कोई नारायण का अध्टाक्षर मंत्र, कोई भुक्ति साधक भक्ति बीजमंत्र तथा कोई द्वादशल्यास कर अमल ज्ञानिगण चतुर्भुज, आनन्द धाम, श्री भूमि सहित नीलमेघ वर्णश्याम पीताम्बरधारी, नारायण का ध्यान करके बेदसार महामंत्र जप रहे थे ! (२९-३४) 97 कुशग्रन्थिकृतां मालां पद्यबीजभवां तथा । तुलसीकाष्ठसम्भूतां प्रवालमणिसम्भवाम् ।। ३५ ।। स्फाटिकीं स्वर्णविकृतिं पुत्रजीवभवां तथा । कृत्वाक्षमालां विविधां मन्त्रसिध्यर्थमेव च ।। ३६ ।। ध्यात्वा ददर्श जपतो मुनीन्परमभास्वरान् । कुशग्रन्थि, कमलगड्ढे तुलसी काठ, मूंगा, मणि, स्फटिक, सोनवण, पुत्रजीवा, रुद्राक्ष आदि नाना प्रकार की मालाओं को बनाकर मन्त्रसिद्धि के लिये ध्यान में मग्न होकर जप करते हुए परम तेजस्वी मुनियों को उन्होंने देखा । (३५-३६) तेषां मध्ये महात्मानं ब्रह्माणं कमलासनम् ।। ३७ ।। चतुर्मुखं चतुर्वाहुं जपन्तं ज्वलनोपमम् । स्फाटिकीभक्षमालां च धारयन्तं महौजसम् ।। ३८ ।। ध्यायन्तं मनसा श्रीश नासाग्रन्यस्तलोचनम् । व्याघ्रत्वचि समासीनं निश्चलं ध्यानयोगतः ।। ३९ ।। निवातस्थं महादीपं निष्कम्पमिव च स्थितम् । ददर्श राजा संहृष्टो वसिष्ठेन महात्मना ।। ४० । । तत्र योगिमुनीन् सर्वान् देवान्नत्वा यथाविधि । अतिष्ठच्च महाराजो विस्मयोत्फुल्ललोचनः ।। ४१ ।। 13