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सारिकाशुकहंसानां मयूराणां स्वनैर्युतम् । कपोतमधुरालापैर्विचित्रमृगपक्षिभि ।। २२ ।। शोभितं च सुगन्धैः सुधूपैश्चापि विराजितम् । भरामृदङ्गपणवमुरजस्वनसम्भृतम् ।। २३ ।। ढक्कानिस्साणसन्नादसम्पूरितदिगन्तरम् । वीणाकिन्नरभेदानां मञ्जुलस्वनसंयुतम् ।। २४ ।। रुपयौवनसम्पन्नदिव्यस्त्रीलास्यलालितम । श्रवणानन्दजनन हृदयालादकारकम् ।। २५ ।। नयनानन्दजनकं सर्वमङ्गलशोभितम् । चामरग्राहिणीभिश्च सुरूपाभिः सुचारुभिः ।। २६ ।। गृहीतव्यजनाभिश्च रुपयौवनचारुभिः । नीराजनकराग्राभिः श्यामाभिश्च निषेवितम् ।। २७ ।। छत्रध्वजधराभिश्च स्त्रीभिः सेवितमादरात् । एवमत्यद्भुतं दिव्यं विमानं ददृशुर्बुधाः ।। २८ ।। उस अद्भुत तेज से सारा संसार प्रदीप्त हो गया । और उस तेज के बीच सूर्य के समान चमकवाला प्रकाश पूर्ण एक दिव्य तया परम अद्भुत विमान सब देवताओं ने देखा, जिसमें अनेक गोपुर तथा प्रावरण लगे थे और जो अनेकों तपाये हुये सोने के कपाटों से शोभित, नीलम एवं मरकतों के तोरणों से सुसज्जित, फहराती हुई विविध ध्वजा पताकाओं से अलङ्कृत , सुवर्णमय कुम्भों से सज्जे, अग्र गोपुर युक्त, विचित्र विचिन्न रंगों के वितान से मण्डित, स्वर्गीय मुक्तदाम की झालरों से रंजित; मल्लिका, मालती, जाती आदि पुष्पों से मण्डित, तालाबों से युक्त ; चान्दी सोने के तारों से चित्रित ; लम्बमान दस्त्रों से सुशोभित; मणियों की अनेक ढेरी से बने क्रीडा-भण्डप युक्त ; सभा मण्डप के मणि-मण्डप युक्त चारों द्वारपालों से सेवित, हजारों सुरत्न निर्मित स्तम्भवाले भण्डपों से अलङ्कृत रथ, अश्व, गजादि अनन्त दिव्य सवारियों से परिपूर्ण, सारिका, सुग्गा, हंस तथा मोरों के मधुर शब्द से