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स्वपुत्रं नारदं वैव पराशरऋषि तथा । व्यासं शुकं तथा गाग्र्य भार्गवं च्यवनं तथा ।। ३५ ।। अन्यानपि मुनीन्पुण्यानिन्द्राद्यांश्च सुरारांस्तथा । सनकादींश्च योगीन्द्रान्समाहूयेदमब्रवीत् ।। ३६ ।। अति अद्भूत विमान को देखकर लोकपितामह श्री ब्रह्माजी परमानन्द से पूर्ण हुए। अगस्त्य वशिष्ठ, वामदेव, काश्यप, बाबालि, कण्व, देवल, देवदर्शन अपने पुत्र नारद, पराशार ऋशि, व्यास, शुकदेव, गाग्र्य ; भार्गव, च्यवन, तया अन्यान्य गुण्यात्मा मुनियों, इन्द्रादि देवता एवं सनकादि योगीन्द्रों को बुलाकर कछ् (३३-३६) इदं तु दिव्यं परमाद्भुतं शुभं विमानमिन्द्रदि निषेव्यमाणम् । विभाति विष्णोरिव मन्दिरं परं पश्याम सव वयमद्भुत गृहम् ।। ३७ ।। इतीरयित्वा प्रविवेश तद्गृहं पितामहः सर्वजगत्पतिस्तथा । तथैव सर्वे विबुधास्तपोधना स्तथैव गेहं विविशुश्च योगिनः ।। ३८ ।। हम लोग जो यह दिव्य परम अद्भुत शुभ इन्द्रादि से सेवित विमान देखते हैं वह् विष्णु का परम धाम अद्भुत गृह वा विष्णुनन्दिर ही है । यह कहकर सर्व जगत्पात परम पितामह ब्रह्माजी तया सभी देक्ता, तपोधन ऋषिवृन्द एवं सव योगिगण उस विमान गुह में घुस गये। (३७-३८) इति श्रीवाराहपुराणे श्रीवेङ्कटाचलमाहात्म्ये श्रीभगवदाविर्भवादि वर्णनं नाम षटचत्वारिंशोऽध्यायोऽत्र चतुर्दशः ।