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107 भृङ्गपङ्क्तिसमाकारदिव्यालकसुशोभिताम् । प्रफुल्लपङ्कजस्मेरमुखमन्दस्मितोज्ज्वलाम् ।। १२ ।। तरुणारुणसङ्काशकुसुम्भवसनोज्ज्वलाम् ! किरीटहारमुकुटकेयूराङ्गदशोभिताम् ।। १३ ।। वामहस्त लसद्धमलालाम्बुजमना वलयाङ्गदसंशोभिलम्बमानान्यपाणिकाम् ।। १४ ।। वीक्षमाणां कटाक्षेण मुहुः श्रीवत्सलाञ्छनम् ।। १५ ।। कमलासन पर बैठी हुई तपाये सोने के रंग की, वम्पा के उद्दीप्त रंगवाली, केशर की शोभा धारण किये, पीसी हुई हल्दी के रंगवाली, शरत्कालीन पूर्णचन्द्र के समान मुखबाली, भ्रमरपङ्क्ति के समान दिव्य केशर पाशयुक्त, खिले हुए कमल के समान हास्ययुक्त उज्ज्वल सुखवाली, बालरवि तथा किंशुभ के समान लाल पोशाक पहने, किरीट, हार, भुकुट, केयूर आदि सद्भूषणों से सुसज्जित, बायें हाथ में मनीहर नील कमल धारण किये, और दूसरे हाय (दाहिने हाथ) में बलया बिजायठ आदि धारण किये, श्री विष्णु भगवान के दक्षिण वगल में बैठी, श्री लक्ष्मीजी को देखा, जो कटाक्ष से श्रीवत्सलांछन श्रीधर भगवान को देख रही थी । (१०-१५) श्रीधरं वामपार्श्वस्थां तुलसीश्यामलाङ्गकाम् । सर्वसहां वसुमतीं सर्वाभरणभूषिताम् ।। १६ ।। द्विजराजज्वलज्योत्स्नामन्दहासमनोहराम् । मदमत्तचकोराक्षीं फुल्लपङ्कजवक्त्रकाम् ।। १७ ।। वामेतरकराम्भोजधृतनीलसरोरुहाम् । श्यामाभनुपमां भूमिं स्वर्णपद्मासने स्थिताम् ।। १८ ।। कटाक्षयन्तीं लोकेशममृतस्राविवीक्षणै ।