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108 पुनः वाम पाश्र्वस्थ तुलसी के समान श्यामलाङ्गी तथा सर्वसहा श्रीभूमिदेवी को भी देखा, जो सर्वाभरण भूषिता, चन्द्रमा की उज्ज्वल ज्योत्स्ना के समान मन्द-मन्द हँसती हुई, मदमत्त चकोर के समान आंखवाली, फूले हुए कमल के समान मुखवाली, दाहिने हाथ में नील कमल धारण किये, स्वर्ण कमल के ऊपर बैठी हुई अनुपमेय लोकेश भगवान को अमृतश्रावि कटाक्ष से देख रही थी। (१६-१८) ददृशुर्बद्मरुद्राद्यास्त्रिदशा मुनिसत्तमाः ।। १९ ।। योगिनश्च तथा राजा कोसलेन्द्रो महाद्युति । वहमा, रुद्र आदि देवतागण, मुनिगण, गन्धर्वगण तथा सभी सुरश्रेष्ठ योगिगण एवं कोसलेश महाराज दशरथजी ने वेङ्कटेश भगवान के दर्शन किये। (१९) नानारत्नसमाकीर्णज्वलन्मकुटशोभितम् ।। २० ।। मन्दस्मितमनोहारि श्रीमद्वदनपङ्कजम् । दयारसतरङ्गौघफुल्लपङ्कजलोचनम् ।। २१ ।। सुनासिकापुटस्मेरपूर्णेन्दुमुखमण्डलम् । कर्णद्वयलसद्धेममकरराभरणोज्ज्वलम ।। २२ ।। कण्ठलम्बिलसद्धेमप्रैवेयकविभूषितम् । तप्तकार्तस्वरोद्भूतब्रह्मसूत्रविराजितम् ।। २३ ।। केयूराङ्गदसद्भूषवृत्तायतचतुर्भुजम् । ज्वालायुतसहस्रारसुदशन्धर वरम् ।। २४ ।। शरच्चन्द्रप्रतीकाशपाञ्चजन्यधरं शुभम् । अश्रान्तवरदानोद्यद्दक्षपाणिसरोरुहम् ।। २५ ।। कटीतटसुविन्यस्तवामपाणिजलेरुहम् । लावण्यसिन्धुलहरीमहावर्तसुनाभिकम् ।। २६ ।।