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सुशोभित, तपाये सोने का बना यज्ञोपवीत पहने, केयूर अदि सद्मूषणयुक्त लम्बी-लम्भी चार गठीली भुजा वली, चमकते हुए हजारों धार वाले सुदर्शन चक्र लिये हुए, शरच्चन्द्र के समान उज्जवल प्रकाश वाले पाञ्चजन्य को धारण किये, अविरल वरदान देने में उद्यत अपने दक्षिण कर कमल को उठाये और बाये हाथ कमर पर रखे हुए, सौन्दर्य समुद्र को लहरदार भवर के समान नाभिवाले सम्पूर्ण लोकों का आधार पेट (जठर) से सुशोभित कमर में किंकिणीदार कमरधन पहने हुए, वहीं एक कटार लगाये हुए, कामदेव रूप अक्षम्य हाथियों को वश करनेवाले झालानररुप जंधवाले, कामदेव के बाणों के समान शीभावाले दोनों पैरयुक्त, त्रैलोक्य रुप पीताम्बर को कमर में धारण किये, घुटनों में सुन्दर धुंधरु आदि भूषण पहने, हंसी के समान मधुर शब्द करनेवाले, पायजेब नूपुर धारण किये, बालचन्द्रमा की अद्भुत शोना धारण करनेवाले नखयुक्त सर्वाभरणभूषित, हजारदलवाले कमल के पीढे पर रखे हुए. पारिजात वृक्ष के जडतले विराजमान, कोटि कामदेव के समान त्रैलोक्य को मोहन करनेवाले फूटती हुई लावण्य युक्त २५ वर्ष की युवा अवस्था मृगराज के बाल कुमार के समान श्रीडा करने में निरत रहनेवाले, दयामूर्ति, क्षमागुण की मूर्ति, महौदार्य गुणों के साक्षात मूर्तिरूप, सौन्दर्य का मूर्तिमान, नारायण, अनादि, अव्यय पुरुषोत्तम तथा अच्युत भगवान की देवता, गन्धर्व, सुर-सत्तम आदि सबोंने देखा । {२०-३५) द्रष्टुं प्रत्यक्षतो यस्य रूपं तेपुस्तपोधनाः । तमजं देवदेवेशं शृङ्गाररसवारिधिम् ।। ३६ । चक्षुषां फलमत्यर्थं ददृशुः प्रीतमानसाः । नयनानन्दजननं दृष्ट्वा तं सूर्यतेजसम् ।। ३७ ।। सर्वेषां नेलपद्मानि विकासं प्रापुरञ्जसा । हर्षावेिशसमाविष्टा दर्शनात्तस्य योगिनः ।। ३८ ।। मुनयश्च तथाऽन्ये च ननृतुश्चाप्सरोगणाः । निपतन्तं पतत्यन्ये भ्रमन्तं भ्रामयन्ति च ।। ३९ ।। उत्पतन्तं पतत्यन्ये हर्षपर्याकुलेक्षणाः । आनन्दाश्रृ प्रमुञ्चन्तो मदोन्मत्ता इवाऽभवन् ।। ४० ।।