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128 महाराज दशरथ की पुत्रार्थ प्रार्थना करना हे भगवन ! हे पुरुष शार्दूल!! हे अच्युत!!! आप की कृपा से आनन्दपूर्वक बहुत दिन राजभोग किया तथा ब्राह्मणों को अनन्त धन दान दिया । प्रायः समी सुख तो अनुभव कर चुका हूँ, साथ ही सभी शत्रुओं को परास्त भी किया : परन्तु हे प्रभो ! पुत्र-सुख का कुछ भी अनुभव न किया । द्विजातीय ब्राह्मणगण कहते हैं कि पुत्र हीनों को लोक प्राप्ति नहीं होती । अत एव मुझे तेजस्वी तथा लोक-विख्यात पराक्रमी एवं बलिष्ठ पुत्र प्रदान कीजिए । (४२-४५) स्वामिन्नभ्युदिते सूर्ये तमस्तिष्टेत्कथं प्रभो!' ।। ४६ ।। 'क्षीयन्ते चास्य कर्माणि तस्मिल्दष्टे परावरे । इति वक्ति श्रुतिः स्वामिंस्त्वयि दृष्टे न चास्त्यघम् ।। ४७ ।। इत्यतो मम गोविन्द ! कथं पापं त्वयि स्थिते'। प्राह चैवं नृपेणोक्तः श्रीशः पापविनाशनः ।। ४८ ।। थह सुनकर वेङ्कटाधिप भगवान ने राजा से कहा -हे राजन ! तुमने पूर्व काल में अनेकों घोर पाप किये हैं, तो मैं क्या करूं ? इस पर राजा ने कहा-हे भगवन ! सूर्य के उगने पर अन्चकार किस प्रकार रह सकता है? श्रुतियाँ भी यही कहती हैं कि आपके दर्शन से सब पाप विनष्ट हो जाते हैं, अस्तु हे गोविन्द ! आपके दर्शन हो जाने पर अब और पाप रह कहाँ गया? । (४६-४८) राजन् प्रीतो भवद्भक्त्या चतुःश्वोक्या त्वदीयया । स्तुत्या च परमप्रीतस्तव दास्ये वरोत्तमम् ।। ४९ ।। यस्मात्प्रीत्या चतुःश्लोकी त्वयोक्ता मम भूपते ! । तस्मात्तु तव पुत्राश्च चत्वाराऽमतावक्रमाः ।। ५० ।। शूराश्च बलवन्तश्च मतुल्यबलविक्रमाः । दत्ता राजंस्त्वयाऽयोध्यां गत्वा यष्टव्यमादरात्' ।। ५१ ।।