पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/१५१

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कृतानि यानि पापानि नश्यन्त्येव न संशयः । यं यं कामं समुद्दिश्य स्नात्यस्मिंस्तु सरोवरे ।। २० ।। तं तं काममवाप्नोति नात्र कार्या विचारणा । काण: खञ्जः कृशः कुब्जो मूको बधिर एव च ।। २१ ।। अनपत्यो दरिद्रो वा कुष्ठी वा व्याधिपीडितः । मयि चानुत्तमां भक्ति कृत्वा मद्दर्शनोत्सुकः ।। २२ ।। आयाति चेद्यथाकामं प्राप्नोति हि न संशयः । अद्य प्रभृति नि:शङ्का जनाः कमलसम्भव ! विचरन्तु दिवारात्रं निबधाश्च महीतले ।। २३ ।। जो कोई इस पर्वत पर किसी प्रकार की तपस्या करेंगे; उनकी तपस्या यज्ञादि कर्म तथा योगियों के जितने तरह के योग हैं, सभी अति श्रीत्र सुलभ मार्ग से ही यहाँ सिद्ध होंगे । हे लोक पितामह ! यह जो स्वामिपुष्करिणी है, वह सब तीथों का स्वामी होने के कारण यथार्थ रुप से ही उक्त नामद्वारा प्रसिद्ध हैं। हे पितामह ! पृथ्वीतल पर गंगा, यमुना आदि जितने पुण्यतीर्थ हैं, वे सब इसी तीर्यराज से उत्पन्न हुए हैं। रोरम्मद तटाक जो वैकुण्ठ में है वहीं यहा स्वामिपुष्करिणी नाम से प्रसिद्ध हैं। यहाँ स्नान करने से करोडों महापाप नाश होते हैं। अनन्त उपपातक पुञ्ज, जो कुछ गुप्त और प्रकाशित रुप से किये गये हैं, वे सभी विनष्ठ हो जायेंगे, इस में संशय नहीं है । जो इस तालाब में जिस-जिस अभिलाषा की पूर्ति के उद्देश्य से स्नान करेंगे, वह सभी क्रामनायें अवश्य पावेंगे, इस में कुछ भी सन्देह नहीं। काना, कूबडा कृशकाय, लंगडा गूंगा, बहिरा, वंश-हीन, दरिद्र कोडी अथवा अन्यान्य कोई व्याधि-पीडित मुझे में एकान्त भक्ति से मेरे दर्शनोत्सुक होकर आने से इच्छानुसार यह फल पाता है, इसमें सन्देह नहीं । हे कमलासन ! अब से मनुष्य निबध, निश्शंक होकर पृथ्वीतल में दित-रात विचरण करें। (१४-२३) श्रीवेङ्कटाद्रिनिकटस्थासुरवधार्थ चक्रप्रेषणम् इत्थमाश्वास्य दुर्दैत्यविनाशाभ्यर्थिनं विधिम् । सुदर्शनं हेतिराजं समाहूयान्वशात्तदा ।। २४ ।। "