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153 यः स्नात्वबृधं पुण्य तस्य तत्पूर्वजन्मसु । अनन्तेषु पापं तत्क्षणादेव नश्यति' ।। ३० ।। ऋकृत इति श्रुत्वा महादेवतत्तथैवेति चाब्रवीत् एवमेवेति भगवान्विष्णुरप्यब्रवीत्तदा ।। ३१ ।। प्रशशंसुस्तदा देवाः स्वामिपुष्करिणीं तदा । विविधैर्दिव्यकुसुमैः राशीभूतैः सुगन्धिभिः ।। ३२ ।। उपचारैरनेकैश्च वेदघोषैः सुखश्रवैः । नृत्यगीतादिवादित्रैर्दिव्यमङ्गलनिस्वनैः ।। ३३ ।। इष्टवा प्रसूनयागं च तोषयित्वा जनार्दनम् । प्रणाममकरोत् ब्रह्मा सर्वदेवैः समन्वितः ।। ३४ ।। स्नानोत्तर सर्वज्ञ ऋषिप्रवर श्री सनकजी सब को लक्ष्यकर निम्नलिखित बातें बोले-आप सब मेरी बातें सुनिए । मैं हाथ उठाकर कहता हूँ कि जो कुछ मैं ने योगबल तथा ध्यान-बल से जाना है, एवं शास्त्रों में मनन किया है, वह यह है कि चक्रधारी श्री भगवान के इस पुण्यमय महोत्सव के अवभृत में जो स्नान करते हैं उनके अन्यान्य अनन्त जन्मों में किये, सभी महापाप तत्क्षा नष्ट हो जाते हैं । श्री सनक ऋषीश्वर की उपरोक्त बातों को सुनकर श्री महादेव जी बोले-“तथैब " अर्थात “ऐसा ही हैं ' । पुनः श्री विष्णु भगवान ने भी कहा -“ ठीक ऐसा ही है ” । तब सभी देवताओं ने स्वामिपुष्करणी की बहुत प्रशंसा की और नाना भांति की दिव्य सुगन्धित फूलराशियों तथा सुश्राव्य वेदध्वनियों आदि अनेकों उपचारों तथा नृत्य गीत, वाद्य एवं दिव्यमङ्गल ध्वनिओं से प्रसून * यज्ञ कर भगवान जनार्दन को सन्तुष्ट करके सब के अन्त में सब देवताओं के साथ ब्रह्माजी ने भगवान को प्रणाम किया । (२७-३४)

  • प्रत्येक बृहस्पति वार को ३ बजे दिन में पहले सात दिन के वस्त्राभूषणों

को उतारकर संध्या समय केवल पुष्पाभरण से श्री वेङ्कटेश जौ को सजाते हैं। इसी सजावट को प्रसून यज्ञ था फूलंगी कहते हैं। फिर शुक्रवार को