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159 श्री सूतजी कहने लगे कि सबैलोक पितामह झाजी सभी देवताओं से स्तुति किये जाते हुए, हंसपर सवार हो सत्यलोक को चले गये । गंधवों से गान किये जाते हुए दिव्य विमानपर चढ़कर सहस्राक्ष इन्द्र अमरावती पुरी को रवाना हुए । प्रमथ तथा नन्दिरेश्धरादिगणों के साघ पार्वतीति महादेव वेङ्कटाचल को प्रदक्षिण कर निवास करने योग्य उत्तम स्थान को देखते-देखते, उस वेङ्कट पर्वत की अििदशा में परम् मङ्गल लोक-पावन, पवित्र कापिल नामक तालाब देखकर “ यही स्थान रमणीक हैं, यहीं उमादेवी के साथ रहना चाहिए' ऐसा निश्चय कर रजताचल पर्वतपर चले गये । (६११) योगिनः सनकाद्याश्च पापनाशनतीरतः ।। ११ ।। अतिष्ठन्परमप्रीताः काननेषु महत्सु वै । ऋषयः सप्त तत्रैव दिशि चोत्तरपूर्वतः ।। १२ ।। फल्गुनीझरतीरे तु स्वाश्रमेष्ववसन्सुखम् । फाल्गुन्यां पूर्णिमायां तु तत्तीरे कमलालया । अरुन्धतीतपःप्रीता प्रादुरासीत्पुरा किल ।। १३ ।। पापनाशिनी तीर्थ के तट के निकट सत्कादि योगिवृन्द आनन्द पूर्वक घोर जंगल में निवास करने लगे । तया सप्तर्षिण भी उसी पर्वस के ईशान भाग में फल्गुनी तीर्थ के तट पर अपने आश्रम में आनन्द से निवास करने लगे । प्राचीन काल में अरुन्धती देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर श्री लक्ष्मीदेवी फाल्गुनी पूर्णिमा के दिन फाल्गुली के तीर पर प्रकट हुई थीं । (१२-१३) फल्गुनीतीर्थमाहात्म्यम् तस्यै दत्वा वरं चेष्टं प्रार्थिता च तया रमा । ददौ च सरितो नाम फल्गुनीशब्दपूर्वकम् ।। १४ ।। फाल्गुने मासि राकाख्ये फल्गुनीतारके तिथौ । स्नास्यन्त्यत्र तु ये केचिज्जनास्तेषामहं सदा ।। १५ ।।