पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/१७८

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

18ी प्रीता गृहें निवत्स्यामि सर्वकामफलप्रदा इति दत्वा वरं तस्यै पुनः श्रीकमलासना । अन्तर्धानं गता तत्र तत्तीरे मुनयोऽवसन् ।। १६ उनको इच्छित वर देकर उनसे प्रार्थना किये जानेपर उस नदी का नाम फल्गुनी नदी रखा । फाल्गुन मास में पुर्णफाल्गुनी नक्षत्र सहित पूर्णिमा को जो मनुष्य इस फाल्गुनी तीर्थ नदी में स्नान करेंगे, उनपर मैं अत्यन्त प्रसन्न होकर, उनकी सकल कामना पूर्ण करते हुए उनके घर में निवास करूंगी । ऐसा वरदान भगवती अरुन्धती, देवी को देकर श्री लक्ष्मी जो अन्तर्धान हो गयी और मुनिगण उसी स्थान में निवास करने लगे । (१४-१६) देवाः केचन सम्भूय विनिश्चित्य विचार्य च । '। अत्रैव वर्तते श्रीशस्तस्मादत्रैव सर्वदा सेवमाना वेङ्कटेश स्थास्याम' इति निश्चिताः ।। १७ ।। उत्तरे स्वामितीर्थस्य देवनद्यास्तथोत्तरे । कृत्वाऽश्रममुखं तत्र न्यवसंस्ते दिवौकसः ।। १८ ।। कई देवताओं ने इकट्टा हो विचारकर निश्चय किया कि यही लक्ष्मीपति भगवान रहते हैं, अत एव हम लोग भी श्री वेङ्कटेश भगवान की सेवा करते हुए इसी स्थान पर निवास करें । तदनन्तर स्वामितीर्थ के उत्तर देव नदी तीर्थ से कुछ ही उत्तर की ओर अपना-अपना आश्रम बनाकर उन लोगों ने वही सुख पूर्वक निवास करना आरंभ किया । (१७-१८) जाबलितीर्थमाहात्म्यम् तत्र उत्तरदिभागे सरसः पश्चिमे तटे । जाबालिः स्वाश्रमे शिष्यैः न्यवसद्विगतश्रमः ।। १९ ।।