पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/१८०

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पुरुषोत्तम श्री वेङ्कटेश भगवान पृथ्वी देवी तथा लक्ष्मीदेवी के साथ ति, त्रेता एवं द्रापर इन तीनों युगों में इन्द्रादि राजाओं द्वारा परमाद्भुत वितिम्र नित्योत्सवों से पूजित हो, उनका तया प्रार्थी जलों का अभीष्ट पूर्ण करते हुए आनन्द से रहते हैं। कलियुग में तो श्री वेङ्कटेश भगवान वेङ्कटाचल पर विद्युत के समान चमकते हुए रहते हैं। हे निर्मल मुनिगण ! यह सब कथा तो झाप सबों को मैं ने कह सुनाया ; और भी कुछ कहना चाहता हूँ । आप लोग सुनना चाहते हैं? तो कहिए । यह सुनकर सब मुनियों ने यह बात कहीं । (२३-२६) पूर्वस्यां िदशि मुदर्शनकृतासुरवधप्रकार मुनय ऊचु वेङ्कटेशाभ्यनुज्ञातश्चक्रेण निहता रणे । दुष्टदानवसङ्काश्च दुष्टबोरा महीभृतः ।। २७ ।। इत्युक्त हि त्वया पूर्व कथं के वा हता मुने । श्रोतुमिच्छा हि महती यद्यस्मासु दया तव ।। २८ ।। शंस सूत ! रथाङ्गस्य वृत्तान्तं रणभूमिषु । इति पृष्टो जगादासौ सूतः परमधार्मिकः ।। २९ ।। सुदर्शन द्वारा पूर्वीय असुरों का वध मुनियों ने पूछा-हे सूत जी वेङ्कटेश भगवान की आज्ञा से सुदर्शन चक्र ने दुष्ट, चोर तथा पापी राजाओं का नाश किया या, यह वृत्तान्त आपने पहले ही कहा है । यदि हम पर आपकी दया है, तो हम लोगों को पुनः वही विशेष रूप से सुनने की उत्कट इच्छा है। (२७-२९) श्रा सूत उवाच :- श्रूयतां चक्रराजस्य चारित्रं परमाद्भुतम् । पराक्रमं सङ्ग्रहेण वक्ष्यामि शृणुतामलाः ।। ३० ।।