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164 श्री सूतजी बोले-आप लोगों ने चक्रराज सुदर्शन का परमाद्भुत चरित सुना । पर उनका विकट पराक्रम विस्तारपूर्वक कहना असम्मव है । दुष्टीं की एकदम नाशकर दी, ऐसा कहे जाने पर महा तेजस्वी चक्रराज ने श्री वेङ्कटेश भगवान की आज्ञा सिर पर रख, पर्वत शिखर से निकल गन्धर्वो से सेवित हो, आयुध शस्त्र से तैयार, महा मुसल धारण किये हुए, प्रास तोमर, शूल पट्टिश धारण करनेवाले तथा तलवार ढाल, धनुष, बाण धारण करनेवाले शूरों के साथ, गज घोडे, ऊँट आदि अनेक युद्ध वाहनों के साय, भेरी, मृदछु, पटह, ाक, नगाडे, मर्दल तथा अनेक जयव्यज्जक बाजाओं के साय, पदानिसेना से युक्त हो, राजा का वेष धारण कर, परम सुशोभित हजार भुजा से मणिडत हो, किरीट, हार, मुकुट, वलय, विजायठ, आदि सब भूषण से सुशोभित हो, ढाढों से करालमुख से जलते हुए अग्नि के समान तेजस्वी, प्रवर्तकादि अस्व लिये पचास हायों से युक्त, निवर्तकादि अस्त्र लिये अन्य पचास हाथों सहित, पद्मराग मणि की आभावाले, रक्त दस्त्र पहन अनेक घोड़े जुते हुए दिव्य रथ पर सवार हो, पूर्व दिशा की ओर महाविजय ध्वनि के साथ प्रस्थान किया । उस महानाद से संसार के चराचर भयभीत हो गये, और ऐसा विचारले कि मानी आकाश फट पड़ा हो, अथवा सब पर्वत विदीर्ण हो गये हो । ऐसा विचारकर सभी प्राणी हाहाकार करने लगे । (३०.४०) इति श्रीवाराहपुराणे श्रीवेङ्कटाचलमाहात्म्ये श्रीवेङ्कटाद्रिवैभव प्रयांसादिवर्णनं नाम त्रिपञ्चाशोऽध्यायोऽत्रैकविंशः ।